आचार्य श्री लिखते हैं ---- " मानव चेतना को सही और समग्र ढंग से जाने बिना विज्ञान को जानना अधूरा ज्ञान है l वह ऐसा ही है कि सारे जगत में तो प्रकाश हो और अपने ही घर में अँधेरा हो l यह अपने ही हाथों लगाईं गई फाँसी हो जाती है l जीवन में शांति और संतोष मानव चेतना को जानने से ही आता है l " इस अधूरेपन से उपजी परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए पॉल टिलिच ने लिखा है ----- "आधुनिक मनुष्य जीवन का अर्थ खो चुका है l इस खोएपन की शून्यता को प्राय: उथली विज्ञान पूजा से भरा जाता है l इस कारण वह अपने नैतिक जीवन में , यहाँ तक कि भावनात्मक समस्याओं के लिए भी वैज्ञानिक समाधान खोजता है l इस खोजबीन में उसे तनाव , कुंठा व असुरक्षा ही हाथ लगती है l " आचार्य श्री लिखते हैं ----- " अब तक विज्ञान और अध्यात्म में जो विरोध रहा है , उसका परिणाम अशुभ है l जिन्होंने मात्र विज्ञान की खोज की है , वे शक्तिशाली हो गए , पर अशांत और संतापग्रस्त हैं और जिन्होंने मात्र अध्यात्म का अनुसन्धान किया है , वे शांत तो हो गए , पर लौकिक दृष्टि से अशक्त और दरिद्र हैं l आवश्यकता वैदिक ज्ञान की परंपरा को नवजीवन देने की है l आचार्य श्री कहते हैं --- शक्ति और शांति का , विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय जरुरी है
No comments:
Post a Comment