पुराने जमाने में लीडिया नामक देश का बादशाह ' कारूँ ' अपने धन के लिए बड़ा विख्यात था l उसने इतना अधिक सोना , चाँदी , रत्न , जवाहरात आदि अपने खजाने में संग्रह किए थे कि संसार में अभी तक उसका नाम उदाहरण के रूप में लिया जाता है l एक बार यूनान का एक महापुरुष ' सोलन ' उसके दरबार में गया l वहां पर कारूँ ने उसे अपना अपार धन दिखाकर पूछा ---- " क्या संसार में मुझसे बढ़कर और कोई सुखी हो सकता है ? " सोलन तो तत्वज्ञानी था l उसने कहा --- " मैं तो उसी व्यक्ति को सुखी समझता हूँ , जिसका अंत सुखमय हो l " यह सुनकर कारूँ अप्रसन्न हो गया और उसने सोलन को बिना विशेष आदर - सत्कार के विदा कर दिया l कुछ समय बाद ईरान देश के राजा साइरस ने कारूँ को हराकर कैद कर लिया और उसे मृत्युदंड दिया l जब वह जीवित जलाया जाने लगा तो उसे सोलन की बात याद आ गई और उसके मुँह से ' हाय सोलन ' , ' हाय सोलन ' शब्द निकला l साइरस के पूछने पर उसने सोलन की बात बता दी l साइरस पर भी इस उपदेश का प्रभाव पड़ा और उसने कारूँ को प्राणदान दे दिया l
No comments:
Post a Comment