पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " युवावस्था जीवन का बसंत है l इसका सदुपयोग करने पर व्यक्ति बहुत कुछ कर जाता है l इस काल में पर्वतों का स्थान बदलने और नदी की राह मोड़ने जैसे असंभव कार्य संभव बनाये जा सकते हैं l " आचार्य श्री लिखते हैं ----- " बलवान और शक्तिशाली व्यक्ति यदि संस्कारवान भी होगा तो अनीति और अन्याय की घटनाएं सुनकर उसका खून खौल ही उठेगा l व्यक्ति अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर अंकुश रखे l उसे सन्मार्गगामी बनाए l पतन की राह पर न चलने दे l यदि कोई इस प्रकार के मार्ग पर चल पड़ा है तो प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि अपनी शक्ति और सामर्थ्य बढ़ाकर उसे दंड दे , ताकि भविष्य में कोई इस प्रकार का दुस्साहस न करे , समाज में अन्ध व्यवस्था न फैलाए l
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