पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " मनुष्य में अच्छाइयां भी होती हैं और बुराइयां भी होती हैं , न कोई पूर्ण रूपेण अच्छा है , और न कोई बिलकुल बुरा l गुण , कर्म स्वाभाव में हर मनुष्य दूसरे से भिन्न होता है किन्तु यदि सामाजिक हित पर व्यक्तिगत इच्छाओं , आकांक्षाओं को वारे जाने का दृष्टिकोण अपनाने पर उसका यह मिश्रित स्वरुप भी उपयोगी और चिरस्मरणीय बन सकता है l l " स्टालिन उसका सटीक उदाहरण है l मार्क्स की पुस्तक ने स्टालिन को क्रांतिकारी बना दिया l उन दिनों रूस की सामाजिक दशा बहुत बिगड़ी हुई थी l जार के अत्याचारों से जनता त्रस्त थी l जार के निरंकुश शासन से मुक्ति दिलाने के लिए स्टालिन ने अपने जीवन के स्वर्णिम 20 वर्ष समर्पित किए l इस दौरान स्टालिन को गालियाँ, चाबुक , मार , यंत्रणाएँ सभी कुछ सहना पड़ा l इस अवधि में उसे उत्तरी ध्रुव से लगी रूस की सीमा के एक गाँव में जेल में रखा गया l इस गाँव के दो सौ मील तक कोई बस्ती नहीं थी , कड़ाके की ठण्ड पड़ती थी l ऐसी भयंकर जेल में स्टालिन ने चार वर्ष गुजारे l जारशाही का अंत हुआ , फिर लेनिन की मृत्यु के बाद शासन सत्ता स्टालिन के हाथ में थी लेकिन उसने अपने कष्ट , त्याग और बलिदान का मुआवजा सुख - वैभव के रूप में नहीं लिया , वह नौकरों के रहने वाले क्वार्टर में ही रहते थे , उन्ही के जैसा खाना खाते थे l आत्मप्रशंसा और आत्म विज्ञापन से वह कोसों दूर था l
No comments:
Post a Comment