' सत्य की विजय होती है , शक्ति की नहीं l ' रावण का आतंक दसों दिशाओं में था l युग चाहे कोई भी हो असुरता के लक्षण हर युग में एक जैसे ही होते हैं , उन्ही के आधार पर असुर की पहचान होती है l रावण था तो ऋषि पुत्र लेकिन वो स्वयं को गर्व से ' दानवराज ' कहता था l असुरता को पराजित करना इतना आसान नहीं होता , उसके लिए अध्यात्म की शक्ति की आवश्यकता होती है l उस युग में एक राजा था ' सहस्त्रार्जुन ' उसके पास तपबल , आत्मबल और सत्य का बल था l उसके विशाल साम्राज्य में सभी ओर सदाचरण , न्याय और संतोष था , उसे देखकर रावण का हृदय ईर्ष्या के मारे फट जाता था l रावण जानता था कि सहस्त्रार्जुन को सीधे युद्ध में हराना असंभव है l इसलिए उसने छल युद्ध का सहारा लिया l जब सहस्त्रार्जुन नर्मदा के किनारे सूर्य भगवान को जल चढ़ा रहा था तब रावण ने उस पर अचानक आक्रमण किया और कहा --- आज तुम हमारे बंदी बनोगे , यह विशाल साम्राज्य मेरा अपना होगा l ' उसकी बात सुनकर सहस्त्रार्जुन भयभीत नहीं हुआ , मुस्कराता रहा फिर अचानक नर्मदा के जल से हजारों नावें प्रकट हो गईं , सेना ने चारों तरफ से आक्रमण कर रावण को बंदी बना लिया l जेल में उसे यातना नहीं दी गई , उसे सम्मान के साथ रखा l जब महर्षि पुलस्त्य उसे लेने पहुंचे तो सहस्त्रार्जुन ने रावण से कहा ------ ' रावण ! ध्यान रखना दुराचारी चाहे कितना ही बलवान ,, शक्तिवान क्यों न हो , एक न एक दिन उसका दर्दनाक अंत निश्चित है l इतिहास किसी को याद नहीं करता और काल किसी को क्षमा नहीं करता l तुम्हारा विनाश निश्चित है l
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