ऋषि वचन है -----' हित चाहने वाला पराया भी अपना है और अहित करने वाला अपना भी पराया है l रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है और औषधि वन में पैदा होकर भी हमारा लाभ ही करती है l " ईर्ष्या -द्वेष , लोभ - लालच , कामना - वासना , अहंकार ये सब ऐसी मानसिक विकृतियां हैं जो अपने पराये के भेद को समाप्त कर देती हैं l कुछ पाप तो अनजाने में हो जाते हैं लेकिन इन दुष्प्रवृतियों से ग्रस्त व्यक्ति जानबूझकर पापकर्म करता है l अत्याचार में भी एक आकर्षण होता है , ये दुष्प्रवृत्तियाँ ही व्यक्ति को असुर बना देती हैं , यदि ऐसे व्यक्ति के अहंकार पर चोट पहुँचती है तो अत्याचार का स्तर कितना होता है --- भगवान कृष्ण की बाल्यावस्था में उन पर सबसे ज्यादा अत्याचार मामा कंस ने ही किया l प्रह्लाद को उनके पिता हिरण्यकश्यप ने ही सताया l महाभारत में दुर्योधन ने अपने ही भाइयों पर अत्याचार किया , उन्हें वन में भटकने को विवश किया , अपनी ही कुलवधु द्रोपदी को अपमानित किया l यही संसार है l जो पापकर्म करता है , उसे देर - सवेर अपने अपने कर्मों की सजा अवश्य मिलती है , प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं है l जो बुद्धि और विवेक से इन अत्याचारियों की हर चुनौती का सामना करता है वह अर्जुन आदि पांडवों की तरह शक्तिशाली होकर जीवन में सफल होता है l
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