श्रीमद भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- अहंकार एक प्रकार का रोग है , जो व्यक्ति को दुराचार की और प्रवृत करता है l अभिमानवश , लालचवश व्यक्ति से दुराचरण हो जाता है l इसका अर्थ यह नहीं कि उसके लिए भगवान के द्वार बंद हो गए हैं l भगवान कहते हैं --जिनसे गलतियां हो गई हैं , होती रहती हैं , उनके लिए भी मार्ग है --- अनन्यता का मार्ग l अनन्यता का अर्थ है --भक्ति , ईश्वर के प्रति समर्पण , मन में भगवान बसें l भक्ति पापी को भी तार देती है l भगवान मात्र सत्पुरुषों का ही नहीं , बुरों का भी भला करने के लिए आते हैं l जो दुराचरण हो चुका , उसके लिए माफ़ी नहीं है l यदि डकैती की है तो सजा तो मिलेगी ही l लेकिन भगवान कहते हैं --भक्त कभी विचलित नहीं होता , कष्ट में घिरकर भी कभी परेशान नहीं होता , अपना मानसिक संतुलन बनाये रखता है l उसे शाश्वत शांति प्राप्त होती है l कष्ट भी उसके लिए वरदान बनकर आते हैं l '
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