लोकमान्य तिलक से किसी ने आश्चर्य चकित होते हुए पूछा ---- "कई बार आपकी बहुत निंदापूर्ण आलोचनाएं होती हैं , लेकिन आप तो कभी विचलित नहीं होते l " उत्तर में लोकमान्य तिलक मुस्कराए और बोले ---- " निंदा ही क्यों कई बार लोग प्रशंसा भी करते हैं l " वे कहने लगे ---- " ये है तो मेरी जिंदगी का रहस्य , पर मैं आपको बता देता हूँ l निंदा करने वाले मुझे शैतान समझते हैं और प्रशंसक मुझे भगवान का दरजा देते हैं , लेकिन सच मैं जानता हूँ और वह यह है कि मैं न तो शैतान हूँ और न ही भगवान l मैं तो एक इनसान हूँ , जिसमें थोड़ी कमियां हैं और थोड़ी अच्छाइयाँ हैं l मैं अपनी कमियों को दूर करने में और अच्छाइयों को बढ़ाने में लगा रहता हूँ l एक बात और भी है जब अपनी जिंदगी को मैं ही ठीक से नहीं समझ पाया तो भला दूसरे क्या समझेंगे l इसलिए जितनी झूठ उनकी निंदा है , उतनी ही उनकी प्रशंसा है l इसलिए मैं उन दोनों बातों की परवाह न कर के अपने आपको और अधिक संवारने - सुधारने की कोशिश करता रहता हूँ l " सुनने वाले व्यक्ति को इन बातों को सुनकर लोकमान्य तिलक के स्वस्थ मन का रहस्य समझ में आया l
No comments:
Post a Comment