पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' श्रम एक बहुत महत्वपूर्ण विभूति है l यह एक ऐसी कुदाल है , जिसके माध्यम से हम अपने व्यक्तित्व की विभूतियों को खोद सकते हैं l हमारा जीवन हमारे समक्ष जो भी परिस्थितियां , चुनौतियां प्रस्तुत करे , उनमे हमें घबराकर श्रम करने से पीछे नहीं हटना चाहिए l ऐसा करने पर ही हमारा जीवन , हमारी उन्नति का द्वार बनता है l जहाँ पर हम खड़े हैं , वही दरवाजा हमारे लिए प्रगति का द्वार बन जाता है l " आचार्य श्री लिखते हैं श्रम के साथ भावना और मनोयोग तथा बुद्धि और विवेक के जुड़ने पर ही श्रम का महत्वपूर्ण परिणाम मिलता है l जब श्रम सेवा में तब्दील हो जाता है तब यह और भी व्यापक और आध्यात्मिक बन जाता है और व्यक्तित्व की प्रगति के द्वार खोलता है l जब हम सेवा के माध्यम से श्रम करते हैं तो हम निजी जीवन को समृद्ध बनाते हैं और अपने व्यक्तित्व को व्यापक बनाते हैं l
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