स्वर्गीय राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक बार कई राज्यों का दौरा करने के बाद रांची पहुंचे l वहां उनके पैर में दर्द होने लगा l पता चला कि उनके जूतों के तल्ले घिस गए हैं तथा कीलें ऊपर उभर आईं हैं l राजेंद्र बाबू अहिंसक जूतों का ही प्रयोग करते थे l उनके शिविर से दस मील दूर ही अहिंसक चर्मालय का केंद्र था l वहां सचिव को भेजकर नया जोड़ा मंगवाया l जूते में पाँव डालकर उन्होंने कीमत पूछी तो उत्तर मिला ---- ' उन्नीस रूपये l ' डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पूछा --- " क्या इनसे सस्ते जूते नहीं हैं ? " उनके सचिव ने उत्तर दिया ---- " ग्यारह रूपये वाले जूते हैं , पर इनसे कमजोर तथा कठोर हैं l राजेंद्र बाबू को संतोष नहीं हुआ l उन्होंने कहा ----- " जब ग्यारह रूपये के जूते से काम चल सकता है , तब उन्नीस रूपये क्यों खर्च किये जाएँ ? इन्हे लौटाकर ग्यारह रूपये वाला जोड़ा मंगवाओ l " राष्ट्रपति जी वहां तीन दिन ठहरे l उन्होंने किसी आने - जाने वाले से जूते बदलवाए l सचिव को मोटर द्वारा जूते बदलने नहीं भेजा l उन्होंने कहा --- " जितने रूपये जूतों में बचाएंगे , उतने पैट्रोल में लग जायेंगे l " यद्द्पि बात छोटी - सी थी , परन्तु राष्ट्र की संपत्ति की एक - एक पाई का ध्यान रखने वाले राजेंद्र बाबू के लिए ये बहुत गंभीर बात थी l ये छोटी - छोटी बातें ही व्यक्ति को महान बनाती हैं l
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