28 June 2021

WISDOM -------

   स्वर्गीय  राष्ट्रपति   डॉ.  राजेंद्र  प्रसाद   एक  बार  कई  राज्यों  का  दौरा  करने  के  बाद  रांची  पहुंचे   l   वहां  उनके    पैर    में  दर्द  होने  लगा   l   पता  चला  कि   उनके  जूतों  के  तल्ले  घिस  गए  हैं   तथा  कीलें  ऊपर  उभर  आईं  हैं   l   राजेंद्र  बाबू  अहिंसक  जूतों  का  ही  प्रयोग  करते  थे    l   उनके  शिविर  से  दस  मील   दूर  ही   अहिंसक  चर्मालय  का  केंद्र  था  l   वहां  सचिव   को  भेजकर  नया  जोड़ा  मंगवाया  l    जूते    में  पाँव  डालकर  उन्होंने  कीमत  पूछी   तो  उत्तर  मिला  ---- ' उन्नीस  रूपये   l '  डॉ.  राजेंद्र  प्रसाद  ने  पूछा  --- " क्या  इनसे  सस्ते  जूते   नहीं  हैं  ? "  उनके  सचिव  ने  उत्तर  दिया  ---- " ग्यारह  रूपये  वाले   जूते   हैं  ,  पर  इनसे  कमजोर  तथा  कठोर  हैं   l   राजेंद्र  बाबू  को  संतोष  नहीं  हुआ  l   उन्होंने  कहा ----- " जब  ग्यारह  रूपये  के  जूते   से  काम  चल  सकता  है  ,  तब  उन्नीस  रूपये  क्यों  खर्च  किये  जाएँ   ?   इन्हे    लौटाकर     ग्यारह  रूपये  वाला   जोड़ा  मंगवाओ   l  "    राष्ट्रपति जी  वहां  तीन  दिन  ठहरे   l   उन्होंने  किसी  आने - जाने  वाले  से   जूते   बदलवाए  l   सचिव  को  मोटर  द्वारा   जूते   बदलने  नहीं  भेजा   l     उन्होंने   कहा  --- "  जितने  रूपये   जूतों  में  बचाएंगे   ,  उतने  पैट्रोल  में  लग  जायेंगे   l  "   यद्द्पि   बात  छोटी - सी  थी  ,   परन्तु  राष्ट्र  की   संपत्ति   की   एक - एक  पाई   का  ध्यान   रखने  वाले    राजेंद्र  बाबू   के  लिए    ये  बहुत  गंभीर  बात  थी  l   ये  छोटी - छोटी   बातें  ही  व्यक्ति  को  महान  बनाती   हैं    l 

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