मरते समय मनुष्य को जिस पीड़ा का अनुभव होता है , वह पीड़ा मरने की नहीं , बल्कि चले गए जीवन की होती है l कबीर दास जी ने कहा है ---- कहत कबीर अंत की बारी l हाथ झारि जस चलै जुआरी l l कबीर दास जी कहते हैं ---- अंत में मृत्यु के समय ऐसे जाना पड़ता है , जैसे जुआरी को अपने खेल के अंत में अपना सब कुछ गँवा कर लौटना पड़ता है l जुए में जो जीतता है वह भी हारता है और जो हारता है वह तो हारता ही है l यह छल है क्योंकि हारने वाला यह सोचता है कि अभी हार गए तो कोई बात नहीं , अगली बार जीत निश्चित है , एक बार और भाग्य आजमा लूँ l ठीक यही बात जीतने वाला सोचता है , अभी एक बार और , अपनी जीत तो पक्की है l इस एक बार का सिलसिला तब तक चलता है , जब तक कि सब कुछ गँवा नहीं दिया जाता l जीवन भी ऐसा ही है l हम सारा जीवन कुछ पाने के लिए भागते रहते हैं , जो कुछ पाया भी वह भी अंत में छूट जाता है , खाली हाथ चले जाते हैं l
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