16 August 2022

WISDOM

  लघु -कथा --- निर्भयता  के  सामने  ब्रह्म राक्षस  भी  पराजित  हुआ  -----  राजा  विक्रमादित्य  ने   आयु  के  चौथेपन  में  संन्यास  ले  लिया   और  वे  अवधूत  का  जीवन  व्यतीत  करने  लगे  l   उनके  स्थान  पर  जो  भी  राजा  बैठता , उसे  भयंकर  ब्रह्मराक्षस   रात्रि  के  समय  मार  डालता  l   इस  प्रकार  कितने  ही  राजाओं  की  मृत्यु  हो  गई   l  भेद  कुछ  खुलता  ही  नहीं  था  l    अत: मंत्रियों  आदि  ने   राजा  विक्रमादित्य  को  खोज  निकालने  और   समस्या  का  हल  निकालने  का  निश्चय  किया   l  खोजने  पर  वे  एक  स्थान  पर  मिल  गए  ,  उन्हें  सारी  स्थिति  समझाई  गई  l  विक्रमादित्य  ने  अपनी  दिव्य  द्रष्टि  से  ब्रह्म राक्षस  की  करतूत  समझ  ली   l  उनने  रात्रि  में  शयन कक्ष  के  बाहर   इतने पकवान -मिष्ठान  रखवा  दिए   कि  उन्हें  खाकर   उसका  पेट  भर  गया   l  फिर  भी  राजा  को  मारने  शयन कक्ष  में   पहुँच  गया   l  विक्रमादित्य  बहुत  बुद्धिमान  थे  , उन्होंने  ब्रह्मराक्षस   को  पलंग  पर  बैठाया   और  वार्तालाप  में  लगाया   l  राजा  ने  उसकी  भूख  बुझाने  का  उपयुक्त  प्रबंध   करा  देने  का  भी  आश्वासन  दिया   l  साथ  ही  मित्रता  की  शर्त  के  रूप  में   यह  वर  माँगा  कि  वह  उनकी  आयु  बता  दे   l  ब्रह्मराक्षस  ने  सौ  वर्ष  बताई   l  राजा  ने  कहा  ---- इनमें  से  आप  दस  वर्ष  घटा  या  बढ़ा  सकते  हैं  क्या   ?  उसने  मना  कर  दिया  और  कहा  कि  यह  कार्य  तो  विधाता  का  है   l  विक्रमादित्य  तलवार  निकाल  कर  खड़े  हो  गए   और  कहा   कि  जब  आयु  निर्धारित  है  ,  तो  तुम  मुझे  कैसे  मार  सकते  हो   ?   निर्भय  राजा  के  सामने  राक्षस  सहम  गया   और  वहां  से  उलटे  पैरों  भाग  खड़ा  हुआ   l  इसके  बाद  राजगृह  में   प्रवेश  करने  का  साहस  उसने  कभी  नहीं  किया   l   

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