एक ऋषि अपने शिष्य के साथ किसी यात्रा पर जा रहे थे l वे उस नगर के पास से गुजरे जहाँ के राजा को कुछ दिन पूर्व युद्ध में मार दिया गया था l राज -प्रासाद जो कभी हास -विलास का केंद्र था , आज भूत -प्रेतों का वास बना हुआ था l खंडहर देखकर ऋषि ने कहा ---- " कितना भयंकर लगता है यह स्थान , आदमी की गति न होने से स्थान नीरव और उदास लगते हैं l पता नहीं उस दिन धरती की स्थिति क्या होगी , जिस दिन पृथ्वी से मानव का अस्तित्व उठ जायेगा l " शिष्य ने प्रश्न किया ---- " क्या यह संभव है भगवान कि पृथ्वी जन शून्य हो जाएगी ? " ऋषि ने उत्तर दिया ----- " हाँ वत्स ! यह संभव है l लाखों -करोड़ों आदमी भले ही न मरें , पर जिस जिस दिन धरती से उन आदमियों का अन्तर्धान हो जायेगा , जिनके आधार पर मनुष्यता और धरती की प्रतिष्ठा है l जिस तरह यहाँ राजा के न होने से तमाम लोगों की हलचल का महत्त्व नहीं रहा , उसी तरह प्राणप्रद पुरुषों के न होने से धरती की शोभा जाती रहती है l संसार की गति उसमें बसने वाले साधारण आदमियों से नहीं है , बल्कि उस आदमी के कारण है , जिसकी स्फूर्ति से अनेक आदमियों के जीवन सही दिशा में चलते हैं l उनका न रहना और संसार का प्रेतवास बनना एक समान है l "
No comments:
Post a Comment