ऋषियों का वचन है --- 'तृष्णा का कोई अंत नहीं है l आकाश की तरह उसके पेट में बहुत कुछ भरा होने पर भी खाली ही रहता है l ' व्यक्ति स्वयं समाप्त हो जाता है लेकिन तृष्णा कभी समाप्त नहीं होती l ---- महाभारत में राजा ययाति की कथा का वर्णन है l सुख -भोग भोगते हुए कब सौ वर्ष बीत गए , उन्हें पता ही नहीं लगा l होश तब आया जब दरवाजे पर यमराज उपस्थित हुए और कहा ---- "ययाति ! तुम्हारी आयु पूर्ण हुई , कर्मों की गठरी बांधों और यमलोक चलो l " ययाति गिड़गिड़ाए --- " पर इतनी जल्दी कैसे ! अभी तो मेरी सभी इच्छाएं अधूरी हैं , कृपया मुझे जीवन दान दें l " यम देवता बोले -- " ऐसा संभव नहीं है l स्रष्टि का शाश्वत नियम है कि हर व्यक्ति को निश्चित आयु भोगने के बाद यहाँ से विदा होना पड़ता है l " ययाति ने दीनता भरे स्वर में कहा --- " देव ! आप समर्थ हैं , कुछ उपाय करें l " यम देवता ने कहा --- ' तुम्हारे सौ पुत्र हैं , यदि कोई अपना यौवन अपनी आयु तुम्हे देने को सहमत हो जाये तो तुम्हारी इच्छा पूरी हो सकती है , फिर मैं वापस लौट सकता हूँ l ' कामग्रस्त ययाति विवेकशून्य हो चुके थे , अपने सभी सौ पुत्रों से निर्ल्लज होकर यौवन की भीख मांगी l अपने पिता की वृद्धावस्था में ऐसी मन:स्थिति देखकर पुत्रों को बहुत क्रोध आया और आश्चर्य भी हुआ l सबने अपना यौवन देने से मना कर दिया l सबसे छोटा पुत्र विचारशील था , उसे अपने पिता पर दया आ गई , वह अपनी आयु राजा को देने को सहमत हो गया l ---- ययाति ने सौ वर्ष और भोग विलास का जीवन जिया l पौराणिक कथा के अनुसार उनके सैकड़ों पुत्र पैदा हुए l प्रत्येक सौ वर्ष बाद यम देवता आते और ययाति दीन हीन बनकर उनसे जीवन की याचना करते l इस तरह ययाति को दस बार अपने पुत्रों से जीवन दान मिला और वे भोग विलास में निरत रहे l इस तरह हजार वर्ष बीत गए l अंतिम बार जब मृत्यु देवता उपस्थित हुए तो ययाति ने पश्चाताप व्यक्त करते हुए कहा --- ' देव ! मेरा जीवन व्यर्थ चला गया l पापों की गठरी सिर पर लिए मैं यह अनुभव करते हुए जा रहा हूँ कि कामनाओं -वासनाओं की तृप्ति कभी नहीं हो सकती l " उन्हें अंततः नरक की अग्नि में विक्षुब्ध होकर अपनी नियत अवधि पूरी करनी ही पड़ी l
No comments:
Post a Comment