पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं -------- अन्याय चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो , उसका प्रतिकार करने का साहस न करना अपने मानवीय कर्तव्यों की उपेक्षा करना है l अन्याय का अंधकार चाहे कितना ही सघन क्यों न हो , एक आदर्शवादी व्यक्ति उसे मिटाने के लिए दीपक की तरह जले तो प्रकाश हो कर ही रहेगा l ' --------- पंख कटे जटायु को गोद में लेकर भगवान राम ने उसका अभिषेक आँसुओं से किया , स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए भगवान राम ने कहा ---- " तात ! तुम जानते थे रावण महाबलवान है , फिर उससे तुमने युद्ध क्यों किया ? " जटायु ने गर्वोन्नत वाणी में कहा ----- " प्रभो ! मुझे मृत्यु का भय नहीं , भय तो तब था जब अन्याय के प्रतिकार की शक्ति नहीं जागती l " भगवान राम ने कहा ----- " तात ! तुम धन्य हो ! तुम्हारी जैसी संस्कारवान आत्माओं से संसार को कल्याण का मार्गदर्शन मिलेगा l "
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