पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' कीचड़ मत उछालो l हो सकता है कि वह निशाने तक न पहुंचे और उलट कर तुम्हे ही गंदगी से सान दे l ' कलियुग में मनुष्य पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है , वह वे सब कार्य करता है जो उसे नहीं करने चाहिए l इस युग में ईर्ष्या , द्वेष , लोभ , लालच , कामना------- आदि बुराइयाँ अपने चरम पर होती है l समय का प्रभाव कुछ ऐसा होता है कि अच्छे और बुरे , देवता और असुर में भेद करना कठिन होता है l परनिंदा , प्रपंच , षड्यंत्र में उलझा व्यक्ति ईर्ष्या वश किसी की अच्छाई को सहन नहीं करता l असुरता को सबसे ज्यादा खतरा देवत्व से है l यदि कोई सन्मार्ग पर है तो उसकी इतनी निंदा की जाएगी , उसकी इतनी बुराइयाँ की जाएगी कि सामान्य व्यक्ति उसकी अच्छाई को समझ ही न पाए l समाज में सुधार इसलिए नहीं हो पाता क्योंकि समाज का एक बहुत बड़ा तबका अच्छे लोगों की छवि ख़राब करने में लगा रहता है , समाज उनके गुणों से लाभान्वित होने से वंचित रह जाता है l लोग अपने गुणों में वृद्धि करने के बजाय दूसरे को नीचे गिराने में प्रयत्नशील रहते हैं l यह बुद्धि का सबसे बड़ा दुरूपयोग है l
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