संत स्वामी करपात्री जी महाराज ने ' रामायण मीमांसा ' नामक ग्रन्थ की रचना की l ग्रन्थ को प्रकाशन के लिए उन्होंने प्रेस में भेज दिया l बहुत दिनों तक ग्रन्थ प्रकाशित न होने पर उन्होंने राधेश्याम खेमका जी से इसका कारण पूछा l उन्होंने उत्तर दिया ---- "महाराज , ग्रन्थ तो तैयार है , लेकिन कुछ लोगों की भावना है कि उसमे आपका एक सुंदर चित्र छापा जाये l चित्र के तैयार होने में विलंब हो जाने के कारण ही ग्रन्थ अब तक तैयार नहीं हो पाया है l " स्वामी जी ने तुरंत प्रतिवाद करते हुए कहा --- " ख़बरदार ! ऐसी गलती नहीं करना l मेरी पुस्तक भगवान श्रीराम के पावन चरित्र पर लिखी गई है l उसमें मेरा नहीं , बल्कि भगवान श्रीराम का चित्र होना चाहिए l "खेमका जी ने कहा --- " ठीक है , जैसा आप कहते हैं , वैसा ही होगा l " कुछ क्षण मौन रहकर करपात्री जी बोले ---- " संन्यासी को अपनी प्रशंसा और प्रचार से बचना चाहिए l समाज के लिए अच्छे विचार उपयोगी हैं , न कि मेरे चित्र l भगवान श्रीराम का चित्र देने से ही ग्रन्थ की गुणवत्ता बढ़ेगी l "
No comments:
Post a Comment