12 September 2022

अनमोल मोती

 संत  स्वामी  करपात्री  जी  महाराज  ने  ' रामायण  मीमांसा '  नामक  ग्रन्थ  की  रचना  की  l  ग्रन्थ  को  प्रकाशन  के  लिए  उन्होंने  प्रेस  में  भेज  दिया  l  बहुत  दिनों  तक  ग्रन्थ  प्रकाशित  न  होने  पर  उन्होंने  राधेश्याम  खेमका जी  से  इसका  कारण  पूछा  l  उन्होंने  उत्तर  दिया ---- "महाराज ,  ग्रन्थ  तो  तैयार  है  ,  लेकिन  कुछ  लोगों  की  भावना  है  कि   उसमे  आपका  एक  सुंदर  चित्र   छापा  जाये  l  चित्र  के  तैयार  होने  में  विलंब  हो  जाने  के  कारण  ही  ग्रन्थ  अब  तक  तैयार  नहीं  हो  पाया  है  l "  स्वामी जी  ने  तुरंत  प्रतिवाद  करते  हुए  कहा  --- " ख़बरदार  ! ऐसी  गलती  नहीं  करना  l  मेरी  पुस्तक  भगवान  श्रीराम  के  पावन  चरित्र  पर  लिखी  गई  है  l  उसमें  मेरा  नहीं  ,  बल्कि  भगवान  श्रीराम  का  चित्र  होना  चाहिए  l "खेमका जी  ने  कहा --- " ठीक  है  , जैसा  आप  कहते  हैं , वैसा  ही  होगा  l  "  कुछ  क्षण  मौन  रहकर  करपात्री जी  बोले ---- " संन्यासी  को  अपनी  प्रशंसा  और  प्रचार  से  बचना  चाहिए  l  समाज  के  लिए  अच्छे  विचार  उपयोगी  हैं  ,  न  कि  मेरे  चित्र  l  भगवान  श्रीराम  का  चित्र  देने  से  ही   ग्रन्थ  की  गुणवत्ता  बढ़ेगी  l  "

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