13 September 2022

WISDOM ----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं --- "चिंता  मनुष्य  को  वैसे  ही  खा  जाती  है  ,  जैसे  कपड़ों  को  कीड़ा l  बहुत  चिंता  करने  वाले  व्यक्ति  अपने  जीवन  में  चिंता  करने  के  सिवा  और  कुछ  सार्थक  नहीं  कर  पाते  और  चिंता  से  अपनी  चिता  की  ओर  बढ़ते  हैं  l "  चिंता  की  घुन  क्या  होती  है  ,  यह  स्पष्ट  करने  वाला  एक  प्रसंग  है ---- दो  वैज्ञानिक  --एक  युवा  और  एक  वृद्ध  आपस  में  बात  कर  रहे  थे  l  वृद्ध  वैज्ञानिक  ने  कहा ---" चाहे  विज्ञानं  कितनी  भी  प्रगति  क्यों  न  कर  ले  ,  लेकिन  वह  अभी  तक  ऐसा  कोई  उपकरण  नहीं  ढूंढ  पाया  ,  जिससे  चिंता  पर  लगाम  कसी  जा  सके  l "  युवा  वैज्ञानिक  इस  बात  से  सहमत  नहीं  हुआ  और  बोला --चिंता  तो  बहुत  साधारण  बात  है  , इसके  लिए  उपकरण  ढूँढने  में  क्यों  समय  नष्ट  किया  जाए  l   तब  वृद्ध  वैज्ञानिक  उसे  अपनी  बात  समझाने  के  लिए  घने  जंगलों  की  ओर  ले  गए  l  वहां  एक  विशालकाय  वृक्ष  के  सामने  खड़े  हो  गए  और  उस  युवा  वैज्ञानिक  से  कहा ---- " इस  वृक्ष  उम्र  लगभग  चार  सौ  वर्ष  है  ,  इस  वृक्ष  पर   चौदह  बार  बिजलियाँ  गिरी  l  चार  सौ  वर्षों  से   अनेक  तूफानों  का  इसने  सामना  किया    लेकिन  फिर  भी  यह  धराशायी  नहीं  हुआ  ,  मजबूती  से  खड़ा  रहा  l  लेकिन  अब  देखो   इसकी  जड़ों  में  दीमक  लग  गई  l  दीमक  ने  इसकी  छाल  को  कुतर -कुतरकर  तबाह  कर  दिया   और  अब  यह  वृक्ष  गिरने  की  कगार  पर  है  l  इसी  तरह  चिंता  की  दीमक  भी  एक  सुखी , समृद्ध  और  ताकतवर  व्यक्ति  को  चट  कर  जाती  है  l  "    आचार्य श्री  का  कहना  है ---- 'चिंता  करने  के  बजाय  स्वयं  को  सदा  सार्थक  कार्यों  में  संलग्न  रखें  l  जीवन  के  प्रति  सकारात्मक  द्रष्टिकोण  रखना   और  मन  को  अच्छे  विचारों  से  ओत -प्रोत  रखना  --ऐसे  उपाय  हैं  ,जिनसे  मन  को  चिंतामुक्त  किया  जा  सकता  है  l  '

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