लघु -कथा ---- एक आदमी अकसर शमशान में जाकर बैठ जाता था l जब सब उससे पूछते कि यहाँ क्यों बैठे हो तो वह कहता --- " एक दिन तो यहाँ आना ही है , मैं स्वयं ही आ गया l " सब उसे पागल कहते थे l एक दिन एक सेठ की सवारी उधर से निकली तो सेठ ने उसे बुलवाया और उससे वहां बैठने का कारण पूछा , तो उसने कहा --- " एक दिन तो तुम्हे भी यहाँ आना ही है l " यह सुनकर सेठ जी बहुत क्रोधित हुए l उन्होंने कहा --- " तुम मूर्ख हो , मैं अब तक किसी मूर्ख की तलाश कर रहा था l मैं तुम्हे सोने की छड़ी देता हूँ l " उस पागल ने कहा --- " मैं इसका क्या करूँ ? " सेठ जी ने कहा --- " जो तुमसे भी ज्यादा मूर्ख हो उसे दे देना l वह छड़ी हाथ में लेकर घूमता रहता l एक दिन शहर की तरफ गया तो पता लगा कि वे सेठ जी बहुत बीमार हैं l वह उन्हें देखने पहुँच गया l सेठ जी से पूछा --- ' कैसे हो ? ' सेठ जी ने कहा -- " बस , अब तो जाने की तैयारी है l " उसने पूछा --- " कहाँ जा रहे हो ? " सेठ ने कहा --- " जहाँ सब जाते हैं l ' उस व्यक्ति ने कहा --- " तो आपने यात्रा की तैयारी तो की होगी ? ये धन -दौलत , ये सुख -सुविधा का सामान क्या -क्या ले जा रहे हो ? " सेठ ने क्रोध में कहा --- " तुम बहुत मूर्ख हो , वहां पर कोई वस्तु कैसे ले जा सकता है ? " उस व्यक्ति ने कहा --- " सेठ जी , मुझसे बड़े मूर्ख तो आप हैं l आपके पास इतनी धन -दौलत , इतने नौकर -चाकर , इतनी शक्ति सब कुछ था l यदि आप इस धन का , अपनी शक्ति का सदुपयोग करते तो यह पुण्य आपके साथ जाता l अब तो वह समय निकल गया l मनुष्य जन्म अनमोल है , जो वक्त गुजर गया , वह अब कभी वापस नहीं आएगा l पर खैर आप अपनी छड़ी वापस ले लो , क्योंकि मैं अपने से अधिक मूर्ख की तलाश कर रहा था l "
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