ऋषियों का कहना है कि हम इस संसार में आए हैं तो इसका कोई कारण है --हमें किसी का कर्ज चुकाना है या कोई अपना कर्ज चुकता करेगा l यह कर्ज किसी भी रूप में हो सकता है l हम अपने जीवन में जिसके भी संपर्क में आते हैं चाहे वह भूमि हो , संस्था हो , पशु -पक्षी हों , संतान , रिश्ते -नाते --जो भी हों उन सबसे हमारा जन्म -जन्मान्तर का लेन -देन होता है जिसे निपटाने के लिए हम जन्म लेते हैं जैसे --किसी की संतान बहुत बीमार है , लाखों रूपये उसकी बीमारी पर खर्च हो रहे हैं तो इसका अर्थ है कि उस व्यक्ति पर अपनी संतान का , उस चिकित्सक का पिछले जन्मों का कर्ज है जिसे वह चुका रहा है l हम इस संसार में सुख -दुःख , हानि -लाभ , मान -अपमान , प्रेम , तिरस्कार जो भी महसूस करते हैं , वह सब कर्ज है जो हम चुका रहे हैं या कोई हमसे वसूल कर रहा है l कर्ज चुकने के बाद ही मुक्ति है l एक कथा है --- एक राजा के संतान तो होती थी परन्तु एक -दो साल की होकर मर जाती थी l जब उसके पांचवें पुत्र का जन्म हुआ तो उसने ज्योतिषियों को बुलाकर उसकी जन्म पत्री दिखाई l ज्योतिषी ने कहा --- " महाराज 1 अब तक आपके जो पुत्र हुए हैं , वे सब आपने कर्ज चुकाने आए थे , साल -दो साल में अपना कर्ज लेकर चले गए l , किन्तु आपका यह पुत्र अपना कर्ज चुकाने आया है , इसलिए आप इसे कोई कार्य न करने दें , जिससे यह आपका कर्ज न चुका सके l यह आपके साथ तब तक बना रहेगा ,जब तक कर्ज न चुका दे l " राजा यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ , वे उस पर दिल खोलकर पैसा लुटाते थे , जिससे वह और अधिक कर्जदार हो जाये l जब वह पंद्रह वर्ष का हुआ तो एक दिन राज कर्मचारियों के साथ रथ पर बैठकर घूमने जा रहा था तो उसने देखा कि रास्ते में एक आदमी बेहोश पड़ा है l उसने रथ रोककर उसे उठाया l उसकी जेब से उसका पता मिल गया l राजकुमार ने उसे रथ पर बिठाकर उसे उसके घर पहुँचाया l वह एक सेठ का बेटा था , सेठ बहुत खुश हुआ l उसने अपने गले से मोतियों की माला उतारकर राजकुमार के गले में पहना दी l राजकुमार ने बहुत मना किया , पर सेठ ने कहा --- " तुमने मुझ पर जो उपकार किया उसका बदला तो मैं नहीं चुका सकता , पर तुम इसे स्वीकार कर लो l " राजकुमार घर आया , वह माला अपनी माता को दे दी और खाना खाकर सोया तो सोता ही रह गया l घर में हाहाकार मच गया l ज्योतिषी को बुलाया गया l राजा ने कहा --- " पंडित जी , आपकी ज्योतिषी विद्या भी झूठी हो गई , क्योंकि मैंने तो इससे कोई धन नहीं लिया l " तब तक रानी ने वह मोतियों की माला लाकर दी और बताया कि यह माला उसे किसी सेठ ने दी थी l ज्योतिषी ने कहा ---" देखिए महाराज ! ज्योतिषी विद्या झूठी नहीं हुई बल्कि आप यह भी देखिए कि इसे आपका कर्ज तो चुकाना ही था , उस सेठ से कर्ज लेना भी था l उस सेठ से अपना कर्ज लेकर तथा आपसे कर्ज मुक्त होकर वह चला गया l " इस संसार में यही लेन -देन चलता रहता है l केवल मनुष्य रूप में ही नहीं कभी -कभी गाय , बैल , कुत्ता , बिल्ली , पक्षी बनकर भी कर्ज चुकाना पड़ता है l प्रकृति में हिसाब बराबर होता है , लेन -देन में एक पैसा , एक पाई भी इधर से उधर नहीं होता l
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