रामकृष्ण परमहंस के पास नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद ) को आते काफी अवधि हो चुकी थी l एक दिन वे अपने शिष्यों से बोले --- " अब तक तो नरेंद्र के पास सब कुछ था , पर अब माँ इसे बहुत दुःख देंगी l क्यों ? क्योंकि उन्हें इसका विकास करना है l " नरेंद्र को काफी दुःख -वेदनाएं सहन करनी होंगी l तभी वह लोक -शिक्षण हेतु गढ़ पायेगा अपने आपको l उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि दुःख ही भाव -शुद्धि करते हैं , दुःख ही व्यक्ति को अन्दर से मजबूत बनाते हैं l नरेंद्र के ऊपर दुःखों की बाढ़ आ गई l सब कुछ छिन गया l रोटी के लिए तरस गए l कई गहरी पीड़ाएं एक साथ आईं l उनने अपनी बहन को आत्महत्या करते देखा , माँ का रुदन देखा l रामकृष्ण उनकी हर पीड़ा में दुःख भी व्यक्त करते थे , पर जानते थे , यह सब जरुरी है l इसी ने नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बनाया l
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