27 September 2022

WISDOM

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- " ईर्ष्यालु  व्यक्ति  की  जीवन  यात्रा  अधूरी  सी  होती  है  ,  जिसमे  जो  मिलता  है ,  उसकी  कद्र  नहीं  होती  और  जो  नहीं  मिल  पाता  , उसका  विलाप  चलता  रहता  है  l  ऐसे  व्यक्ति  को  लगता  है  कि  दूसरों  का  जीवन  आसान  है  , उन्हें  कोई  कष्ट  नहीं   l  ईर्ष्यालु  व्यक्ति  कभी  भी  अपने  जीवन  से  संतुष्ट  नहीं  होता  , असंतोष  उसे  हर  पल  घेरे  रहता  है  l  उसे  लगता  हैहै  कि  सबसे  ज्यादा  तकलीफ  उसी  के  जीवन  में  है   और  दूसरे  बिना  किसी  कठिनाई  के  ही  आगे  बढ़ते  जा  रहे  हैं   l "  एक  कथा  है ------  एक  व्यक्ति  के  मरने  का  समय  आया  तो  देवदूत  उसे  लेने  पहुंचे  l  उस  व्यक्ति  ने  जीवन  में  कई  पुण्य  किए  थे  और  पाप  भी  l  देवदूत  उसके  हाथ  में  एक  पुस्तक  देते  हुए  बोले  --- 'तुम्हारे  पुण्य  कर्मों  के  बदले  यह  पुस्तक  तुम्हे  देते  हैं  l  यह  नियति  की  पुस्तक  है  , इसमें  सारे  प्राणियों  के  भाग्य  लिखे  हैं  , तुम  चाहो  तो  इसमें  कोई  एक  परिवर्तन  अपने  पुण्य  कर्मों  के  बदले  कर  सकते  हो  l "  उस  व्यक्ति  ने  पुस्तक  के  पन्ने  पलटने  आरंभ  किए  ,  अपना  पन्ना  देखने  से  पूर्व  वह  दूसरों  के  भाग्य  के  पन्ने  पढ़ने  लगा  l  जब  उसने  अपने  पड़ोसियों म के  भाग्य  के  पन्ने  देखे  तो  उनका  भाग्य  देखकर  वह  जल भुन  गया   और  मन  ही  मन  बोला  --मैं  कभी  इन  लोगों  को  इतना  सुखी  नहीं  होने  दूंगा  और  क्रोध  में  भरकर  वह  उनके  पन्नों  में  फेर -बदल  करने  लगा  l  देवदूतों  द्वारा  दिए  गए  निर्देश  के  अनुसार    परिवर्तन  केवल  एक  बार  ही  किया  जा  सकता  था  l  अत -:  जैसे  ही  उसने  एक  बदलाव  किया  ,  देवदूत  ने  वह  पुस्तक  उसके  हाथ  से  ले  ली  l  अब  वह  व्यक्ति  बहुत  पछताया  , क्योंकि  यदि  वह  चाहता  तो   अपनी  नियति  में  सुधार  कर  सकता  था  , पर  ईर्ष्या  के  वशीभूत  होकर  वह  दूसरों  की  नियति  बिगाड़ने  में  लग  गया   और  अवसर  गँवा  बैठा  l  मनुष्य  ऐसे  ही  जीवन  में  आए  बहुमूल्य  अवसरों  को  गँवा  देता  है  l 

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