पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " ईर्ष्यालु व्यक्ति की जीवन यात्रा अधूरी सी होती है , जिसमे जो मिलता है , उसकी कद्र नहीं होती और जो नहीं मिल पाता , उसका विलाप चलता रहता है l ऐसे व्यक्ति को लगता है कि दूसरों का जीवन आसान है , उन्हें कोई कष्ट नहीं l ईर्ष्यालु व्यक्ति कभी भी अपने जीवन से संतुष्ट नहीं होता , असंतोष उसे हर पल घेरे रहता है l उसे लगता हैहै कि सबसे ज्यादा तकलीफ उसी के जीवन में है और दूसरे बिना किसी कठिनाई के ही आगे बढ़ते जा रहे हैं l " एक कथा है ------ एक व्यक्ति के मरने का समय आया तो देवदूत उसे लेने पहुंचे l उस व्यक्ति ने जीवन में कई पुण्य किए थे और पाप भी l देवदूत उसके हाथ में एक पुस्तक देते हुए बोले --- 'तुम्हारे पुण्य कर्मों के बदले यह पुस्तक तुम्हे देते हैं l यह नियति की पुस्तक है , इसमें सारे प्राणियों के भाग्य लिखे हैं , तुम चाहो तो इसमें कोई एक परिवर्तन अपने पुण्य कर्मों के बदले कर सकते हो l " उस व्यक्ति ने पुस्तक के पन्ने पलटने आरंभ किए , अपना पन्ना देखने से पूर्व वह दूसरों के भाग्य के पन्ने पढ़ने लगा l जब उसने अपने पड़ोसियों म के भाग्य के पन्ने देखे तो उनका भाग्य देखकर वह जल भुन गया और मन ही मन बोला --मैं कभी इन लोगों को इतना सुखी नहीं होने दूंगा और क्रोध में भरकर वह उनके पन्नों में फेर -बदल करने लगा l देवदूतों द्वारा दिए गए निर्देश के अनुसार परिवर्तन केवल एक बार ही किया जा सकता था l अत -: जैसे ही उसने एक बदलाव किया , देवदूत ने वह पुस्तक उसके हाथ से ले ली l अब वह व्यक्ति बहुत पछताया , क्योंकि यदि वह चाहता तो अपनी नियति में सुधार कर सकता था , पर ईर्ष्या के वशीभूत होकर वह दूसरों की नियति बिगाड़ने में लग गया और अवसर गँवा बैठा l मनुष्य ऐसे ही जीवन में आए बहुमूल्य अवसरों को गँवा देता है l
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