प्राचीन काल में हमारे ऋषियों ने समाज में संतुलन बनाये रखने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया था , वह था ----- आश्रम व्यवस्था l इसके पीछे उद्देश्य यही था कि 65 -70 वर्ष की आयु तक व्यक्ति सांसारिक जीवन जी लेता है , इसके बाद स्थान खाली करो और नई पीढ़ी को खिलने का मौका दो l इसी विचार को ध्यान में रखकर निश्चित आयु पूर्ण कर लेने पर रिटायर करने की व्यवस्था की गई है l इसके मूल में एक कारण और भी था कि सांसारिक प्राणी होने के कारण लोभ , लालच , कामना , वासना , तृष्णा , महत्वाकांक्षा , अहंकार आदि सभी में कम या ज्यादा होते हैं l अब यदि व्यक्ति की सन्मार्ग पर चलने की प्रवृत्ति नहीं है , नैतिक मूल्यों का ज्ञान नहीं है तो यही भावनाएं आयु बढ़ने के साथ -साथ विकृत रूप ले लेती हैं जिसके दुष्परिणाम सारे समाज को भोगने पड़ते हैं l युद्ध , दंगे , बड़े अपराध , अनैतिक , गैर क़ानूनी कार्य आदि के प्रमुख परिपक्व आयु के ही लोग होते हैं l संसार की आसुरी तत्वों से रक्षा के लिए ही ऋषियों ने कहा था कि एक आयु के बाद ईश्वर का नाम लो , अपने मन को विकारों से मुक्त करने का प्रयास करो ताकि आगे की यात्रा शांतिपूर्ण हो सके l कलियुग में दुर्बुद्धि का प्रकोप है इस कारण सभी क्षेत्रों में संतुलन बिगाड़ गया है l
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