आज हम संसार में देखते हैं कि अमीर बनने की होड़ है l और संपत्ति में से दान करने की भी होड़ सी है l लेकिन इतने अधिक दान -पुण्य के बावजूद भी संसार में सुख -शांति नहीं है , बड़े युद्धों का खतरा है , लोग तनाव में हैं, दंगे , फसाद , गोलीकांड , आत्महत्या , भ्रष्टाचार , छल -कपट , षड्यंत्र , धोखा सामान्य बात हो गई है l जितने बड़े अस्पताल हैं , चिकित्सा की सुविधाएँ हैं उतनी ही बड़ी बीमारियाँ हैं l सामान्य मृत्यु कम है , बीमारी से मरने वालों की संख्या बहुत है l हमारे प्राचीन ऋषियों का और आचार्य का कहना है कि धन कैसे तरीकों से कमाया जाता है और उसको दान करने के पीछे भावना क्या है ? उसका प्रभाव जन -मानस पर पड़ता है l भगवान बुद्ध ने कहा है -- पात्र -कुपात्र का विचार किए बिना सम्पदा को लुटा -फेंकने का नाम दान नहीं है l यश बटोरने के लिए , अपने अहम् की पूर्ति के लिए दान करने के सत्परिणाम कम और दुष्परिणाम अधिक देखने को मिलते हैं l ' कहते हैं कलियुग का निवास स्वर्ण अर्थात धन -सम्पदा में होता है l महाराज परीक्षित ने स्वर्ण मुकुट पहना था तो उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी , यह बात आज भी उतनी ही सत्य है , आज दान के पीछे अपने स्वार्थ है , व्यक्ति एक हाथ से दान करता है तो दूसरे हाथ से उससे डबल कमाई का रास्ता खोज लेता है l यदि लोक -कल्याण का भाव होता तो युद्ध न होते , भूमि , जल , मिटटी , कृषि आदि प्रदूषित न होती , संसार में कितने ही गरीब देश हैं जहाँ भुखमरी है , वहां खुशहाली होती l कहते हैं यदि धन पवित्र साधनों से कमाया जाये और उसका सदुपयोग हो तो वह संसार में खुशहाली लाता है लेकिन यदि धन सत्ता पर चढ़ बैठे तो वही होता है जो आज हम संसार में देख रहे हैं l प्राकृतिक आपदाओं , बीमारी , महामारी आदि के माध्यम से ईश्वर हमें संकेत देते हैं l आज संसार को सद्बुद्धि की जरुरत है , इसके लिए सब प्रार्थना करें l
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