भौतिक प्रगति के साथ यदि मानवीय मूल्यों का ज्ञान न हो तो वह प्रगति मानवता का हित नहीं करती l हमारे प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि ब्रह्मास्त्र , नारायण अस्त्र , पाशुपत अस्त्र आदि ऐसे अनेक अस्त्र मन्त्र की शक्ति से संचालित थे उनका प्रयोग केवल अन्याय और अधर्म के नाश के लिए ही किया जाता था , इन्हें संधान करने के बाद यदि आवश्यक हो तो लौटाया भी जा सकता था l लेकिन आज विज्ञान अकेला है , उसके साथ अध्यात्म नहीं है l एक से बढ़कर एक घातक बम आदि हैं जिनका मानवीय मूल्यों से कोई लेना देना नहीं है , उनके इस्तेमाल से महिलाएं , बच्चे , निर्दोष प्राणी सब मरते हैं l अध्यात्म रहित शक्ति चाहे वह अस्त्र -शस्त्र निर्माण में हो , चिकित्सा या किसी भी क्षेत्र में हो , उसमें स्वार्थ प्रबल होता है इसलिए वह मानवता का अहित करती है l एक कथा है ----एक बार चार मित्र यात्रा पर निकले l उनमें तीन बुद्धिहीन वैज्ञानिक थे और एक बुद्धिमान था l मार्ग में उन्हें एक मरे हुए शेर का अस्थि पंजर मिला l बुद्धिहीन वैज्ञानिकों ने सोचा क्यों न हम इस पर अपनी विद्या की परीक्षा कर लें l तुरंत एक ने उसका अस्थि संचय किया , दूसरे ने उसमें चर्म मांस , रुधिर संचारित किया l तीसरा उसमें प्राण डालने ही वाला था कि बुद्धिमान ने कहा कि --अरे , अरे यह आप क्या कर रहे हैं ? आप सिंह को जीवित कर रहे हैं l वह जीवित होते ही हमें खा जायेगा l पहले अपनी रक्षा का उपाय तो कर लो l ' लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानिल अत: वह अकेला ही पेड़ पर चढ़ गया l तीसरे बुद्धिहीन वैज्ञानिक ने जैसे ही उसमें प्राण डाले , शेर जीवित होकर उन तीनों को खा गया l आज संसार की यही स्थिति है l मनुष्य स्वयं के और समूची मानवता के विनाश में ही जुटा है , चेतना को परिष्कृत करने का कहीं कोई विकल्प नहीं है l
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