भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं के माध्यम से संसार को बहुत कुछ सिखाने की कोशिश की लेकिन कलियुग में मनुष्य पर दुर्बुद्धि हावी होती है इसलिए वह उन शिक्षाओं का इस्तेमाल अपने स्वार्थ तथान अच्छाई को मिटाने के लिए करने लगता है l महाभारत का प्रसंग है कि दुर्योधन ने चतुराई से युद्ध में पांडवों के मामा शल्य को अपनी तरफ मिला लिया l शल्य वचनबद्ध थे अत: दुर्योधन का साथ देना पड़ा तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा -- यह युद्ध अधर्म और अन्याय के अंत के लिए है और आप न चाहते हुए भी दुर्योधन के पक्ष में हैं l अत: इस अपराध बोध से मुक्त होने के लिए जब आप कर्ण के सारथी बने तो हर पल कर्ण का मनोबल कम करने वाली बातें करना l कर्ण बहुत वीर है , उसको हराना नामुमकिन है लेकिन वह अधर्म के पक्ष में है इसलिए उसका अंत निश्चित है l मनोबल गिर जाने से अर्जुन का उसको हराना संभव हो जायेगा l और इस तरह महावीर , महादानी कर्ण का युद्ध में अंत हुआ l भगवान कृष्ण ने इस उक्ति का प्रयोग अधर्म और अन्याय का अंत करने के लिए किया लेकिन आज के इस युग में असुरता , देवत्व को मिटाने के लिए इस उक्ति का प्रयोग करती है l आज व्यक्ति अपनी तरक्की के लिए , स्वयं को उंचाई पर बनाये रखने के लिए स्वयं कोई प्रयास नहीं करता , वह आलोचना , निंदा ओर अपने प्रतिद्वंदी के लिए अफवाह फैलाकर , उसको हर तरह से नीचा दिखाकर उसका मनोबल कम करने के लिए प्रयासरत रहते हैं ताकि वह जिन्दगी की दौड़ में पिछड़ जाये l इस प्रसंग से हमें यही शिक्षा मिलती है कि अपनी निंदा सुनकर कभी भी निराश न हों , स्वयं की तरक्की का प्रयास पूरे आत्मविश्वास से करें l
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