पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ईश्वर ने हमें जो कुछ दिया , जैसी भी परिस्थिति है , उसमें कुछ न कुछ अच्छाई ढूंढकर हम संतोष कर सकते हैं वरना असंतुष्ट रहने के अनेकों कारण हैं l एक कथा है ------- सुंदरवन में एक कौआ रहता था l उसने पहले कभी बगुले को नहीं देखा था l बरसात का मौसम आया तो दूर देश से एक बगुला उड़कर वन में आया l उसे देखकर कौए को बड़ा दुःख हुआ l उसे लगा कि उसका रंग कितना काला है , जबकि बगुला कितना गोरा है l उसने जाकर बगुले से कहा --- - " बगुले भाई ! आप तो बहुत गोरे हो , यह देखकर आपको बहुत सुख मिलता होगा l " बगुला बोला ----- " अरे , मैं तो पहले से ही दुखी हूँ ,, जरा तोते को देखो , वो कितने सुन्दर दो रंगों से रंगा है l मुझ पर तो एक ही रंग है l " अब दोनों मिलकर तोते के पास गए तो तोता बोला --- " अरे , मैं तो तुम दोनों से भी ज्यादा दु:खी हूँ , जरा मोर को देखो वो कितने सुन्दर रंगों से रंगा हुआ है l " अब सब मिलकर मोर के पास पहुंचे तो देखा कि मोर को मारने उसके पीछे शिकारी लगा हुआ है l मोर के सुरक्षित होने पर उन्होंने मोर से अपनी बात कही तो मोर बोला --- " भाइयों ! मेरा तो जीवन मेरे रंगों के कारण असुरक्षित हो गया है l ये रंग न होते तो आज मैं भी तुम लोगों की तरह चैन की बंसी बजा रहा होता l " अब सब की समझ में आया कि भगवान ने हर प्राणी को मौलिक बनाया है , सभी में कोई -न-कोई खासियत है और हमें उसी को निखारने की जरुरत है l
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