लघु -कथा ----- बहुत पुरानी बात है l दो मित्र थे l एक का नाम था सत्य और दूसरे का नाम था असत्य l सत्य जहाँ भी जाता वहां उसका सम्मान होता लेकिन असत्य का सब तिरस्कार करते l इस कारण उसे सत्य से बहुत ईर्ष्या होती थी l ईर्ष्या इतनी प्रबल हो गई कि उसने एक चाल चली l उसने सत्य से कहा -- आज बहुत गर्मी है चलो नदी में स्नान कर आएं l सत्य जब स्नान कर रहा था , उस समय असत्य चुपचाप नदी से निकला और सत्य के श्वेत धवल वस्त्र पहनकर भाग गया l बाहर निकलने पर सत्य को विवश होकर असत्य के वस्त्र पहनने पड़े l उस दिन से अब लोग असत्य को ही सत्य समझने लगे और हर जगह असत्य को पूजा जाने लगा l श्वेत वस्त्र धारण करने से असत्य के मन की मलिनता नहीं गई l अहंकार लोभ , बदले की भावना और प्रबल होती गई l त्रेतायुग , उसके बाद द्वापरयुग फिर कलियुग आ गया l हर युग में अत्याचारी , अन्यायी जो असत्य पर थे , अत्याचारी व अन्यायी थे वे राज करते रहे औए सत्य व न्याय पर चलने वाले वनों में भटके , अत्याचार व अन्याय को सहते रहे l जब अति हो गई तब सत्य और धर्म पर चलने वाले सब एकत्रित होकर विधाता के पास गए और कहा ---- प्रभु ! यह कैसा न्याय है ! हम आपकी शिक्षा के अनुसार सत्य के मार्ग पर हैं लेकिन छल , कपट और षड्यंत्र करने वाले असुर हम पर अत्याचार कर रहे हैं l विधाता ने कहा --- " अत्याचार व अन्याय का अंत करने के लिए ईश्वर ने समय -समय पर अवतार लिया है l कलियुग में असुरता के तार सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैले हुए हैं l चाहे वह परिवार हो , समाज , संस्थाएं , राष्ट्र और सम्पूर्ण संसार में छल , कपट और षड्यंत्र अपने चरम पर है , मनुष्य का मनुष्य पर से विश्वास उठ गया है , बच्चे जो ईश्वर का रूप हैं वे भी सुरक्षित नहीं हैं l पृथ्वी , जल , वायु सभी कुछ प्रदूषित हो गया है l ' विधाता ने मनुष्यों को आश्वासन दिया कि ----" कलियुग में वह समय अति शीघ्र आने वाला है जब हर छोटे -बड़े षडयंत्रकारी का पर्दाफाश होगा , लोगों का नकाब उतरेगा , उनकी असलियत संसार के सामने आएगी , यह दैवी विधान है , इसे कोई नहीं रोक सकता l
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