इस संसार में आदिकाल से ही देवासुर संग्राम रहा है l आकृति से तो सभी मनुष्य हैं लेकिन अपनी दुष्प्रवृतियों के कारण ही कोई असुर कहलाता है जैसे रावण -- इसके दोष , दुर्गुणों ने इसकी विद्वता को धूमिल कर दिया था इसलिए ब्राह्मण कुल में पैदा होकर भी राक्षसराज रावण कहलाया l प्रश्न यह है कि भगवान ने इतने अवतार लिए फिर भी अच्छाई और बुराई के बीच , देवताओं और असुरों के बीच यह संघर्ष समाप्त क्यों नहीं होता इसका कारण यही है कि संघर्ष या युद्ध करने वाला पुरुष समाज है और इसमें वीर , आन -बान और शान वाले बहुत कम हैं , लोग अपने सुख -वैभव के लिए अन्याय और अधर्म से समझौता कर लेंगे , सत्य का साथ नहीं देते हैं l उन पर स्वार्थ और लालच हावी है ल श्रीराम स्वयं भगवान थे , लेकिन धरती पर मनुष्य रूप में जन्म लिया l जब उन पर संकट आया , रावण से युद्ध हुआ तब किसी भी राजा ने , उनके किसी भी रिश्तेदार ने उनकी मदद नहीं की l रावण जैसे शक्तिशाली से युद्ध उन्होंने रीछ और वानरों की मदद से लड़ा l सेतु बन गया था लेकिन किसी राजा ने उनके लिए सेना तो क्या रथ भी नहीं भिजवाया l जब भगवान के वनवास के बाद सुख के दिन आए तब ईर्ष्यालुओं ने उनका सीता जी से बिछोह करा दिया l चाहे भगवान राम हों या कृष्ण , इस धरती पर उन्हें चैन से जीने नहीं दिया l मनुष्य का अपने प्रति ऐसे व्यवहार पर भगवान को भी क्रोध आता है l इतने युग बीत गए लेकिन मनुष्य ने इतिहास से भी कुछ नहीं सीखा , अपनी चेतना का परिष्कार नहीं किया , अपनी दुष्प्रवृतियों को भी दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया इसलिए संसार में अशांति है , प्राकृतिक प्रकोप हैं l केवल आडम्बर करने , कर्मकांड करने से भगवान प्रसन्न नहीं होते , भगवान की कृपा पाने के लिए सन्मार्ग पर चलना जरुरी है l
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