एक व्यक्ति के पास बहुत धन था , पर वह स्वभाव से बहुत कंजूस था l न खुद अच्छे से रहता , न दूसरे का ही कुछ भला कर पाटा l वह अपने घर में धन इसलिए नहीं रखता था , ताकि कोई चोर डाकू चुरा न ले l अत: गाँव के बाहर एक जंगल में गड्ढा खोदकर उसने अपना सारा धन वहां गाढ़कर रख दिया l हर दूसरे -तीसरे दिन जाता और उस स्थान को चुपचाप देख आता l उसे यह देखकर बड़ा संतोष होता कि उसका धन वहां सुरक्षित रखा हुआ है l एक बार एक चोर को शक हुआ तो वह उस कंजूस के पीछे -पीछे चुपचाप गया और छिपकर उस स्थान को देख आया , जहाँ कंजूस बार -बार जाया करता था l जब कंजूस उस जगह का चक्कर लगाकर चला गया तो चोर ने खुदाई कर के सारा धन निकाला और भाग गया l दो -तीन दिन बाद जब कंजूस अपने छिपे धन को देखने गया तो उसे जमीन खुदी हुई और गड्ढा खाली मिला l यह देखकर वह माथा पकड़कर जोर -जोर से रोने लगा , लोग इकट्ठे हो गए कहने लगा ---'मेरे जीवन भर की कमाई चली गई l ' तब एक व्यक्ति बोला -- " सेठजी ! यह धन तो पहले भी आपके काम नहीं आया था और न ही अब आपको इसकी जरुरत थी , हाँ , आपका उस पर अधिकार अवश्य था l अब यदि यहाँ से कहीं चला गया तो आपको कौन सी हानि हो गई ? आप तो उसे वैसे भी इस्तेमाल नहीं करते थे l " कहते हैं धन की तीन ही गति हैं ----दान , भोग या नाश ! जितना ईश्वर ने दिया है उससे अपनी जरुरत पूरी कर , सामर्थ्य अनुसार दान भी करे अन्यथा वह नष्ट हो जाता है l
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