इस संसार में अंधकार और प्रकाश में निरंतर संघर्ष है l प्रकाश आते ही अंधकार का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है l अंधकार में , नकारात्मकता के साथ जीने वाले को भी यदि किसी तरह एक बार ईश्वरीय प्रकाश के दर्शन हो जाएँ तो वह वापस अंधकार की ओर नहीं लौटता l ' पतंगे को दीपक का प्रकाश मिल जाए तो फिर वह अँधेरे में नहीं लौटता , भले ही उसे दीपक के साथ प्राण गँवाने पड़े l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " विषयों में मिलने वाले आनंद से मनुष्य कभी अघाता नहीं है , उसे कभी तृप्ति नहीं होती l लेकिन जब उसे ईश्वरीय प्रकाश के दर्शन होते हैं , अपनी आत्मा में परमात्मा की अनुभूति होती है तब उसे परम आनंद , तृप्ति और शांति प्राप्त होती है l ' एक रोचक कथा है -------- " श्रीरंगम में प्रत्येक वर्ष एक मेला लगता था l उसमें श्री रामानुजाचार्य भी अपने शिष्यों के साथ जाते थे l एक दुर्दांत डाकू जिसका नाम दुर्दम था वह भी उस मेले में आता था l उसका उदेश्य श्रीरंगम की छवि के दर्शन करना नहीं था l वह एक सुन्दर महिला के प्रति आसक्त था और उसी सुंदरी के पीछे छाता लगाकर चलता था l उस डाकू के आतंक के कारण कोई उससे कुछ कहता नहीं था l जब आचार्य रामानुज ने उसे देखा तो शिष्यों से कहा --- ' उसे मेरे पास बुलाओ l " आचार्य की शक्ति के बारे में जानता था इसलिए न चाहते हुए भी वह उनके पास पहुंचा l आचार्य जी उससे बोले --- ' हमें बड़ा अचरज है कि सभी भगवान के सौन्दर्य के दर्शन कर रहे हैं और तुम एक स्त्री में आसक्त हो l " डाकू बोला --- ' यह सुन्दरतम स्त्री है , मैं इसे चाहता हूँ l " आचार्य रामानुज बोले --- ' हम इससे भी सुन्दर कुछ दिखा दें तो क्या तुम इसे छोड़ दोगे ? " ऐसा कहकर वे उसे श्रीरंगम की छवि के दर्शन कराने ले गए l आचार्य की प्रार्थना पर भगवान श्रीकृष्ण ने उसे अपने अप्रतिम सौन्दर्य की एक झलक दिखाई l अपूर्व सौन्दर्य को देखकर वह भाव विह्वल हो गया और बोला ---" महात्मन ! अब तो मुझे इन्ही भगवान को प्राप्त करना है l " इस पर आचार्य बोले --- " यदि तुम निर्दिष्ट तप , साधना व ध्यान करोगे तो भगवान का यह अपूर्व सौन्दर्य तुम्हारे ह्रदय , तुम्हारी आत्मा में टिकेगा और तुम्हे सतत दीखता रहेगा l " वह डाकू इसके लिए तैयार हो गया तप , साधना और ध्यान करते -करते उसकी चित शुद्धि होने लगी और उसकी आत्मा में भगवान की मनोहर छवि स्थिर होने लगी , ध्यान में वह उस मनोहर छवि के दर्शन करने लगा l फिर आचार्य रामानुज ने उसी स्त्री से उसका विवाह करा दिया l उसने सारा जीवन सदगृहस्थ के रूप में जिया l लोकसेवा भी करने लगा l आचार्य कावेरी से स्नान कर लौटते तो उसके कंधे पर हाथ रखकर आते , कोई पूछता तो कहते कि तुम उसका ह्रदय देखो , उसमें भगवान बसते हैं l भगवान के दिव्य सौन्दर्य के दर्शन ने उसके जीवन को परिवर्तित कर दिया l
No comments:
Post a Comment