एक जिज्ञासु ने एक विद्वान् से पूछा ------ इस संसार में अब तक इतने महात्मा , साधु -संत और अवतार हो चुके हैं , सबने इस दुनिया को भला बनाने का प्रयास किया , पर किसी के प्रयत्नों का कोई फल नहीं हुआ l संसार जैसे का तैसा पापपूर्ण अभी भी बना हुआ है , इसमें सदा ही बुराइयों की भरमार रहती है l ' जिज्ञासु ने उस व्यक्ति को एक कहानी सुनाई ---- एक गरीब आदमी ने किसी तरह भूत को अपने वश में करने की सिद्धि प्राप्त कर ली l भूत सामने आ गया और बोला ---- महोदय ! मुझसे जो चाहे काम करा लो लेकिन मैं ठाली न बैठूँगा , जब ठाली रहूँगा तो आप पर ही पिल पडूंगा l " अब गरीब आदमी ने उससे महल , नौकर , खजाना , सभी सुख सुविधाएँ एक -एक कर के जुटा लीं l हर कार्य तुरंत कर के उसके सामने खड़ा हो जाता की अब और काम बताओ l वह व्यक्ति परेशान हो गया l एक तांत्रिक की सलाह पर उसने भूत को कुत्ते की पूंछ सीधी करने का काम सौंप दिया l अब भूत जितनी बार भी उस पूंछ को सीधी करता वह फिर टेढ़ी हो जाती l इस तरह उसे उस भूत से छुटकारा मिला l यह कथा सुनाकर विद्वान् ने जिज्ञासु से कहा ---- हमारा मन भी एक प्रकार का भूत है जो हर समय संसार के सुखों के पीछे भागता रहता है l परमात्मा ने संसार में इतनी बुराइयाँ इसलिए छोड़ रखी हैं कि मनुष्य अपने मन को कुत्ते की पूंछ को सीधा करने यानि इन बुराइयों को दूर करने में लगाये l ये बुराइयाँ आत्मउद्धार का अभ्यास करने के लिए हैं l निरंतर अभ्यास कर के मनुष्य अपने मन पर नियंत्रण कर अपने विकारों को दूर कर सकता और अपनी चेतना को परिष्कृत कर सकता है l
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