लघु कथा ---- खडाऊं पहन कर पंडित जी मंदिर की ओर चले l कदम बढ़ने के साथ खडाऊं से भी खट -खट का स्वर निकल रहा था l पंडित जी को यह आवाज पसंद न आई l वह एक स्थान पर खड़े होकर खडाऊं से पूछने लगे ----" अच्छा यह तो बताओ कि पैरों के नीचे इतनी दबी रहने पर भी तुम्हारे स्वर में कोई अंतर क्यों नहीं आया ? " खडाऊं ने पैरों के नीचे दबे -दबे ही पंडित जी की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा ---- " मैं तो जीने की इच्छुक हूँ पंडित जी , इस संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो दूसरों के दबाव में आकर अपना स्वर मंद कर लेते हैं , उन्हें तो जीवित अवस्था में भी मैं मरा हुआ मानती हूँ l "
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