26 February 2024

WISDOM -----

  वर्तमान  समय   में  संसार  में  जो  भी  विकट  परिस्थितियां  हैं  उसके  लिए  हम  कलियुग  को  दोष  देते  हैं   लेकिन  श्रीमद् भागवत  में  शुकदेव जी   परीक्षित  से  कहते  हैं  ---- कलियुग  में  अनेक  दोष  हैं  , फिर  भी  सब  दोषों  का  मूल  स्रोत  हमारा  अन्त:करण  ही  है  l   हमारे  दोष -दुर्गुण  ही   कलियुग  के  रूप  में  हमें  पीड़ा  और  पतन  में  झोंक  देते  हैं   l   लेकिन  जिस  समय   हमारा  मन , बुद्धि  और  इन्द्रिय  सतोगुण  में   स्थित  होकर  अपना -अपना  काम  करने  लगती  हैं   उस  समय  सतयुग  समझना  चाहिए  l  श्रीमद् भागवत  में  अपने  भीतर  सतयुग  की  स्थापना   का  रहस्य  बताया  गया  है  ---- यदि  हम  चाहते  हैं  कि  हमारे  अन्दर  और  बाहर   सतयुग  आ  जाये   तो  हमें  विवेकी  बनना  चाहिए  l  अपनी  भावना , विचार  और  क्रियाओं  को  विवेक  की  कसौटी  पर  कसना  चाहिए  , जो  सही   हो  उसे   अपनाना  और  जो  गलत  हो  उसे  छोड़  देने  का  साहस  करना  चाहिए   l  '             पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " अविवेकी  व्यक्ति  थोड़े  से  काम  में  ढेरों  शक्ति  व  समय  लगा  देता  है   किन्तु  विवेक  संपन्न  व्यक्ति   थोड़े  का  भी  बड़ा  सार्थक  उपयोग  कर  लेते  हैं   l  ढेरों  संपत्ति  के  बीच   लोग  फूहड़  जिन्दगी  जीते  हैं   और  थोड़े  साधनों  में  भी  व्यक्ति   व्यवस्थित  और  शानदार  ढंग  से  रह  लेता  है   l  यह  विवेक  का  ही  अंतर  है  l  जीवन  भी  एक  संपदा  है  l  निरर्थक  कार्यों  में  सारा  जीवन  लगा  देने  से   कुछ  हाथ  नहीं  आता  , किन्तु  विवेकपूर्ण  थोड़ा  सा  भी  समय   श्रेष्ठ   कार्यों  में  लगता  रहे   तो  मनुष्यों  का  यश  चारों  दिशाओं  में  फ़ैल  जाता  है   l"  पांडवों  ने  अपने  वनवास  के    कष्टपूर्ण  समय  को   नियम , संयम  और  शक्ति  अर्जित  करने  में  बिताया  l  अर्जुन  ने  तपस्या  कर  के  शिवजी  और  देवराज  इंद्र  से  दिव्य  अस्त्र -शस्त्र  प्राप्त  किए   l  जबकि  कौरवों  ने  अपना  समय   छल , कपट  और  षडयंत्र  करने  , पांडवों  को  हर  समय  नीचा  दिखाने   में  ही  गँवा  दिया  l  

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