22 January 2025

WISDOM ------

  ' दु:संग  भले  ही  कितना  मधुर  एवं  सम्मोहक  लगे  ,  किन्तु  उसका  यथार्थ   महाविष   की  भांति  संघातक  होता  है  l '     कहते  हैं   मित्रता  सोच -समझकर  करनी  चाहिए  l  यदि  संगति  सही  नहीं  है   तो   साथी  के  मन  में  गहरे  छुपे  दुर्गुण  उसके  सद्गुणों  को   ढक    देते  हैं  l  व्यक्ति  अपने   ही  सद्गुणों  और  अपने  भीतर  छिपी  ताकत  को  भूल  जाता  है   और  अपने  साथी  के  मन  की  गहराई  में  छिपे  अंधकार   को  समझ  नहीं  पाता  l  महाभारत  के  प्रमुख  पात्र  ' दुर्योधन '  वास्तव  में  इतना  बुरा  नहीं  था  कि  अपने  ही  वंश  का  विनाश   करने  के  लिए  जिम्मेदार  कहलाए  l  महाभारत  में  अनेक  प्रसंग  है  जो  यह  बताते  हैं  कि  दुर्योधन  अपने  वचन   को  निभाने  वाला  , बहुत  वीर   था  l  भगवान  श्री कृष्ण  के  बड़े  भाई  बलरामजी  से  उसने  गदा  युद्ध  सीखा  था  ,  वह  एक  कुशल  प्रशासक  था  , प्रजा  उससे  प्रसन्न  थी  ,  उसमे  उच्च  कोटि  की  संगठन  क्षमता  थी  ,  उस  समय  के  अनेकों  शक्तिशाली  राजाओं  ने  युद्ध  में  उसका  साथ  दिया  l  लेकिन  दुर्योधन  अपने  मामा  'शकुनि '  की   संगत  में  बाल्यकाल  से  ही  रहा  l  शकुनि  के  मन  में  कौरव  वंश  के  प्रति  अच्छी  भावना  नहीं  थी  ,  उसके  मन  में  इस  बात  का  कष्ट  था  कि  उसकी  बहन  गांधारी  का  विवाह   दबाव  में  धृतराष्ट्र  से  हुआ  जो  अंधे  थे  ,  इसलिए  वह  निरंतर  कुटिल  चालें  चलता  रहा  l  देखने  में  लगता  था  कि  वह  दुर्योधन  का  हितैषी  है  ,  लेकिन  वास्तव  में  वह  कौरव  वंश  की  जड़ें  काट  रहा  था  l  दुर्योधन  तो   हस्तिनापुर   युवराज  था  ,  सारा  जीवन  अपने  पिता  के  अंधे  मोह  का  फायदा  उठकर  उसने  राजसुख    भोगा  लेकिन  फिर  भी  पांडवों  पर  अत्याचार  करता  रहा  l  शकुनि  जैसे  कुटिल  व्यक्ति  की  संगति  के  कारण   दुर्योधन  अपने  ही  सद्गुणों  का  सदुपयोग  न  कर  सका   और  कौरव  वंश  के  पतन  का  जिम्मेदार  बना  l  

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