यह संसार गणित से चलता है l सांसारिक मनुष्यों का व्यवहार स्वार्थ पर आधारित है , जितना दोगे , उतना ही मिलेगा l GIVE AND TAKE है l यही स्वार्थ जब अपने चरम पर पहुँच जाता है , तब स्वार्थी केवल लेता है , बदले में देता कुछ नहीं l यह स्वार्थ जब अहंकार से जुड़ जाता है , तब उसमें बिना बुलाए ही अनेक बुराइयाँ आती हैं , फिर ऐसा व्यक्ति अपनी ही बुराइयों के ढेर पर बैठा रहता है l वह अपनी कमियों को देखना , समझना ही नहीं चाहता , तो फिर वे कमियां दूर कैसे हों ? आज संसार में ऐसे ही लोगों की अधिकता है l आज लोग एक दूसरे से आत्मीयता के कारण नहीं , बल्कि स्वार्थ के कारण जुड़े हैं l इसलिए वे भीड़ में रहकर भी अकेले हैं l उन्हें परस्पर किसी का विश्वास भी नहीं है , कब किसका स्वार्थ टकरा जाए और जिन्दगी मुसीबतों से घिर जाए ? जो संसार की इस रीति -नीति को समझता है वह ईश्वर को ही अपना साथी बना लेता है और सुख -शांति से सुकून के साथ अपनी जिन्दगी जीता है l
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