पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " ईश्वर को अनुशासन प्रिय है l जो भी इस अनुशासन को तोड़ेगा , उसे क्षमा नहीं मिल सकती है l दंड अवश्य मिलेगा l यह स्रष्टि नियमों से बंधी है l प्रकृति ईश्वरीय विधान के अनुरूप परिचालित है l नियमों के खिलाफ चलने का तात्पर्य है दंड का भागीदार होना l " आचार्य श्री लिखते हैं --- ' यदि क्षमा का प्रावधान होता तो भगवान राम ने रावण और उसकी आसुरी सेना को क्षमा कर दिया होता l यदि गलती से भी माफी की गई होती तो आज कुम्भकरण , जयद्रथ , शिशुपाल , जरासंध , कंस आदि आततायियों ने धरती को अपने कब्जे में ले लिया होता , पर ऐसा नहीं हुआ , सभी को उनके कुकर्मों का दंड मिला , सभी अत्याचारियों का अंत हुआ l भगवान श्रीराम तो करुणाकर थे , जिनकी करुणा और संवेदना जग जाहिर है लेकिन उन्होंने असुरों को क्षमा नहीं किया l इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण ने कौरवों को उनकी उदंडता के लिए क्षमा नहीं किया l अनीति का साथ देना भी अनीति करने जैसा है , इसलिए उन्होंने भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य , कर्ण आदि का अंत करा दिया l इस स्रष्टि में ईश्वरीय विधान सर्वोपरि है l कोई उससे बड़ा नहीं है l जो भी ईश्वरीय विधान को तोड़ता है उसे क्षमा नहीं मिलती l "
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