5 January 2025

WISDOM -----

  एक  व्यक्ति  ने  सुन  रखा  था  कि  तप  करने  से  अहंकार  मिट  जाता  है  l  क्रोध  चला  जाता  है  l  वह  घर  छोड़  के  हिमालय  चल  दिया  l   जंगलों  के  पार  बर्फीली गुफाओं  में  बैठकर  साधना  करने  लगा  l  उसे  ऐसा  करते  बीस  वर्ष  बीत  गए ,  वह  अकेला  ही  रहता  था  l   उसे  अहंकार  व  क्रोध  का  मौका  ही  नहीं  मिलता  था  l  उसने  सोचा  ---चलो  अहंकार  से  छुटकारा  मिला  l  अब  वापस  लौट  चलना  चाहिए  l  वह  गुफा  से  निकलकर  नीचे  आया  ,  जब  लोगों  को  पता  चला  कि  वह  बीस  वेश  तक  हिमालय  की  गुफाओं  में  तप  का  के  आया  है  ,  तो  भीड़  इकट्ठी  होने  लगी  l  उसके  दर्शनों  के  लिए  लोग  आते ,  पैर  छूते , परिक्रमा  करते  l  महात्मा  के  मन  में   ऐसा  सम्मान  पाकर  गुदगुदी  होती  l  एक  दिन  भक्तों  ने  कहा  --- चलें  कुम्भ  स्नान  कर  के  आएं  l  महात्मा  चल  पड़े  l  मेला -ठेला  की  भीड़  में   उनके  पैर  पर   जमकर   किसी  का  भूलवश  पैर  पड़  गया  l  महात्मा  तिलमिला  गए  और  उछलकर  उस  व्यक्ति  की  गर्दन  पकड़  ली   और  बोले  ---- "  जानता   नहीं  दुष्ट  , मैं  कौन  हूँ  ? "  महात्मा  के  अंदर  छुपा  अहंकार  और  क्रोध  भी  उछलकर  ऊपर  आया  l  लोग  हैरान  हो  गए   कि  ये  कैसा  महात्मा  है  ?  कोई  जानबूझकर  पैर  तो  नहीं  रखा  है  , जो   इतना  आगबबूला   हो  गया l     ऋषि  कहते  हैं  ---- यदि  व्यक्ति  अपने  पर  ही   नियंत्रण  न  कर  पाए  तो  उसकी   एकांत  साधना , तप  तितिक्षा  सब  व्यर्थ  है  l  सच्ची  साधना  जंगल  में  नहीं  संसार  में  रहकर  होती  है  , जहाँ  मन  को  विचलित  करने  के  अनेक  साधन  हैं  ,  उनके  बीच  रहकर  मन  को  नियंत्रित  कर  शांति  से  रहना  ही  तप  है  l  और  मन  भी  स्वाभाविक  रूप  से  नियंत्रित  होना  चाहिए  ,  उसे  बलपूर्वक  नियंत्रित  करने  के  दुष्परिणाम  हो  सकते  हैं  l  

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