अपने समय की प्रख्यात लेखिका व नारी स्वतंत्रता की हिमायती मेरी स्टो किशोरावस्था में बहुत सुन्दर लगती थीं l उनकी चर्चा और प्रशंसा भी बहुत होती थी l इस पर उन्हें गर्व होने लगा और वे अभिमान पूर्वक चलने लगीं l बात उनके पिता को मालूम हुई तो उन्होंने बेटी को बुलाकर प्यार से कहा --- " बेटी ! किशोरावस्था का सौन्दर्य तो प्रकृति की देन है l इस अनुदान पर तो उसी की प्रशंसा होनी चाहिए l तुम्हे गर्व करना हो तो साठ वर्ष की उम्र में शीशा देखकर करना कि तुम उस प्रकृति की देन को लंबे समय तक अक्षुण्ण रखकर अपनी समझदारी का परिचय दे सकीं या नहीं l " इस शिक्षा का परिणाम था कि अपने अहंकार को गलाकर मेरी स्टो एक समाज सेविका के रूप में विकसित हो सकीं l
No comments:
Post a Comment