जाति प्रथा केवल हमारे देश में ही नहीं है , संसार के विभिन्न देशों में , विभिन्न धर्मों में भेदभाव अवश्य है l इसे कुछ भी नाम दे दिया जाये , इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इनमें एक वर्ग पीड़ित है और दूसरा उसे भिन्न -भिन्न तरीकों से सताने वाला l जाति के नाम पर लोग इतना लाभ कमाते हैं कि धर्म भी उसके आगे फीका पड़ जाता है l एक लोक कथा है ---- एक सेठ था l अपार संपदा थी उसके पास l जितनी संपदा थी , उससे कई गुना उसे लालच था l बहुमूल्य संपदा को वह मटकों में भरकर जमीन में गाड़ कर रखता था l इतनी संपत्ति एकत्रित करने के लिए वह स्वांग रचता था l उसकी हुकूमत आसपास के आठ -दस गांवों तक थी l उसने गुप्त रूप से अपनी एक सेना बना रखी थी जिसमें कुछ युवक , कुछ वृद्ध पुरुष और कुछ वृद्ध महिलाएं भी थी l ये लोग क्या करते हैं , उस सेठ की ऐसी कोई सेना है , इस बात को कोई नहीं जानता था l वह सेठ इन गाँवों में अक्सर कोई न कोई उत्सव , प्रवचन , गाँव के लोगों की कलाकारी से संबंधित तमाशा कराता रहता था l जब ये कार्यक्रम निश्चित होते तब सेठ के ये सैनिक जो गाँव के ही विभिन्न परिवारों के थे , उनके और अधिक हमदर्द बनकर लोगों के पास जाते और कभी प्यार से कभी धमकी देकर लोगों को समझाते कि सेठ जो भी करा रहा है , उसमे तुम्हे जाना है , गाँव के कल्याण के लिए निश्चित राशि जमा करनी है अन्यथा तुम्हे जाति से बहिष्कृत कर दिया जायेगा , तुम्हारा हुक्का -पानी बंद कर दिया जायेगा l गाँव के सीधे -सरल लोग , मरता क्या न करता अपना पेट तन काटकर इस 'आदेश ' को मानते l उन्हें भय था कि जाति से बहिष्कृत हो गए तो अकेले कैसे रहेंगे , बच्चों का विवाह कैसे होगा ? गरीबी और भुखमरी के कारण वहां महामारी फ़ैल गई , वे गाँव वीरान हो गए , जो बच गए वे रातों -रात गाँव छोड़कर चले गए l अब उस वीराने में सेठ अकेला , अपनी संपदा के ढेर पर बैठा था , और छाती पीट -पीट कर रो रहा था कि उसके वैभव पर उसके क़दमों में सिर झुकाने वाला अब कोई नहीं है l वह चीख -चीख कर अपनी करतूत बता रहा था लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था l उसका परिवार भी महामारी की चपेट में आ चुका था l उस गाँव से जब बहुत दिनों तक कोई आवाजाही नहीं हुई तो तो लोगों ने वहां जाकर पता लगाना चाहा की क्या बात हो गई ? जब लोग वहां पहुंचे तो देखा पूरा गाँव वीरान था और सेठ अपने कमरे में अपनी छाती पर बहुमूल्य संपदा को दोनों हाथों से दबाए मृत पड़ा था l
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