मनुष्य की मूल प्रवृत्तियां --काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार --यह सब अति प्राचीन काल से ही मनुष्य में हैं l सतयुग में इसका प्रतिशत कम था लेकिन कलियुग में यह अपने चरम पर है l कलियुग में इन दुष्प्रवृत्तियों के साथ छल , कपट , धोखा , तिकड़म , दुष्प्रचार जैसे कायरतापूर्ण कार्य भी अत्यधिक होते हैं l रावण स्वयं को राक्षसराज रावण कहता था , लेकिन उसने अपने सगे -सम्बन्धियों के साथ धोखा , छल नहीं किया l रावण चाहता तो विभीषण को लालच दे सकता था कि तुम राम को छोड़कर वापस आ जाओ , तुम्हे आधा राज्य दे देंगे l विभीषण उसकी बातों में आकर वापस लौट जाता तो वह उसे मरवा देता l लेकिन रावण ने ऐसा नहीं किया , वो कायर नहीं था , वीर था l वेद -शास्त्रों का ज्ञाता और महापंडित था l इस कलियुग का सबसे बड़ा दोष यही है कि अब मनुष्य विश्वास के काबिल नहीं है l भाई -भाई के संपत्ति के झगड़े के मुक़दमे से अदालतें भरी हैं l धोखे से किसी को भी मारने की घटनाएँ सामान्य हैं l रिश्तों के नाम पर परस्पर स्नेह नहीं है , शोषण है l यह एक कटु सत्य है कि बड़े -बड़े अपराधियों की शुरुआत परिवार में ही छोटे -छोटे अपराधों को करने से होती है l ऐसा क्यों होता है ? क्योंकि लालच , कामना , वासना अपने चरम शिखर पर है और ये दुर्गुण मनुष्य की बुद्धि को भ्रष्ट कर देते हैं l उसे मौके की तलाश होती है और ऐसा मौका उसे परिवार में , मित्रों और निकट सम्बन्धियों में आसानी से मिल जाता है l यहीं से उसके अपराधिक जीवन की शुरुआत हो जाती है l जागरूकता बहुत जरुरी है l मनुष्य या तो स्वयं को सुधारने का प्रयास करे , अन्यथा ये दुर्गुण व्यक्ति को मानसिक रूप से विकृत कर देते हैं l फिर ये सम्पूर्ण समाज के लिए खतरा होते हैं l
4 March 2025
3 March 2025
WISDOM -----
कर्मफल के सिद्धांत को माने या न माने , यह व्यक्ति की अपनी इच्छा है l लेकिन यह निश्चित है कि मनुष्य का जीवन प्रकृति के अनुसार ही चलता है l जैसे हर रात के बाद दिन होता है , फिर दिन के बाद रात l यह क्रम निरंतर चलता ही रहता है l इसी तरह मनुष्य के जीवन में कभी दुःख और कष्ट की अँधेरी रात होती है और कभी सुख का सुनहरा सूर्योदय होता है l कभी पतझड़ तो कभी वसंत l प्रकृति के इस नियम को स्वीकार करने पर ही व्यक्ति तनाव रहित जीवन जी सकता है l शांति का जीवन जीने के लिए उस अद्रश्य शक्ति पर गहरी आस्था होनी चाहिए l आज की सबसे बड़ी समस्या यही है कि मनुष्य स्वयं को भगवान समझने लगा है , फिर आस्था और विश्वास किस पर करें ?
2 March 2025
WISDOM ------
भौतिकता की अंधी दौड़ के साथ मनुष्य की मानसिकता बहुत बदल गई l कलियुग का भी असर है कि अधिकांश व्यक्ति अच्छाई में भी बुराई ढूंढ लेते हैं l किसी के साथ अच्छा व्यवहार करो तो लोग उसे उसकी कमजोरी और दिखावा समझते हैं कि जरुर कोई स्वार्थ होगा इसीलिए सद् व्यवहार है l लेकिन मनुष्य के अतिरक्त सभी प्राणी --पशु -पक्षी आदि इस भौतिकता की दौड़ में नहीं हैं इसलिए वे नि:स्वार्थ प्रेम को समझते हैं l इनसान से अधिक विश्वसनीय अब पशु -पक्षी हैं l एक कथा है ----- एक राजा ने एक दिन स्वप्न देखा कि कोई साधु उससे कह रहा है कि बेटा ! कल रात को तुझे एक विषैला सर्प काटेगा और उसके काटने से तेरी मृत्यु हो जाएगी l वह सर्प अमुक पेड़ की जड़ में रहता है , पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेने के लिए वह तुझे काटेगा l राजा धर्मात्मा था , उसे स्वप्न की सत्यता पर विश्वास था l राजा ने सोचा कि मधुर व्यवहार से सर्प के मन में जो शत्रुता है , उसे दूर किया जा सकता है l यह निर्णय कर राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शैया तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया , सुगन्धित जल का छिड़काव कराया , मीठे दूध के कटोरे जगह -जगह रखवा दिए और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई भी उसे किसी प्रकार का कष्ट पहुँचाने का प्रयत्न न करे रात के ठीक बारह बजे सर्प अपनी बाबी में से फुफकारता हुआ निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया l रास्ते में मीठा दूध , सुगन्धित जल , फूलों का बिछौना -- इन सबके आनंद से उसके मन का क्रोध शांत होने लगा l द्वार पर खड़े सशस्त्र प्रहरी ने भी उसे कोई कष्ट नहीं दिया l वह सोचने लगा कि जो राजा इतना धर्मात्मा है , शत्रु के साथ इतना मधुर व्यवहार करता है उसे काटूं कैसे ? राजा के पलंग तक पहुँचने तक उसका निश्चय बदल गया था l वहां पहुंचकर उसने राजा से कहा --- " हे राजन ! मैं तुम्हे काटकर अपने पूर्व जन्म का बदला चुकाने आया था परन्तु तुम्हारे सद व्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया l अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूँ l उसने मित्रता के उपहार स्वरुप अपनी बहुमूल्य मणि राजा को दी और वापस अपने घर चला गया l