भौतिकता की अंधी दौड़ के साथ मनुष्य की मानसिकता बहुत बदल गई l कलियुग का भी असर है कि अधिकांश व्यक्ति अच्छाई में भी बुराई ढूंढ लेते हैं l किसी के साथ अच्छा व्यवहार करो तो लोग उसे उसकी कमजोरी और दिखावा समझते हैं कि जरुर कोई स्वार्थ होगा इसीलिए सद् व्यवहार है l लेकिन मनुष्य के अतिरक्त सभी प्राणी --पशु -पक्षी आदि इस भौतिकता की दौड़ में नहीं हैं इसलिए वे नि:स्वार्थ प्रेम को समझते हैं l इनसान से अधिक विश्वसनीय अब पशु -पक्षी हैं l एक कथा है ----- एक राजा ने एक दिन स्वप्न देखा कि कोई साधु उससे कह रहा है कि बेटा ! कल रात को तुझे एक विषैला सर्प काटेगा और उसके काटने से तेरी मृत्यु हो जाएगी l वह सर्प अमुक पेड़ की जड़ में रहता है , पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेने के लिए वह तुझे काटेगा l राजा धर्मात्मा था , उसे स्वप्न की सत्यता पर विश्वास था l राजा ने सोचा कि मधुर व्यवहार से सर्प के मन में जो शत्रुता है , उसे दूर किया जा सकता है l यह निर्णय कर राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शैया तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया , सुगन्धित जल का छिड़काव कराया , मीठे दूध के कटोरे जगह -जगह रखवा दिए और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई भी उसे किसी प्रकार का कष्ट पहुँचाने का प्रयत्न न करे रात के ठीक बारह बजे सर्प अपनी बाबी में से फुफकारता हुआ निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया l रास्ते में मीठा दूध , सुगन्धित जल , फूलों का बिछौना -- इन सबके आनंद से उसके मन का क्रोध शांत होने लगा l द्वार पर खड़े सशस्त्र प्रहरी ने भी उसे कोई कष्ट नहीं दिया l वह सोचने लगा कि जो राजा इतना धर्मात्मा है , शत्रु के साथ इतना मधुर व्यवहार करता है उसे काटूं कैसे ? राजा के पलंग तक पहुँचने तक उसका निश्चय बदल गया था l वहां पहुंचकर उसने राजा से कहा --- " हे राजन ! मैं तुम्हे काटकर अपने पूर्व जन्म का बदला चुकाने आया था परन्तु तुम्हारे सद व्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया l अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूँ l उसने मित्रता के उपहार स्वरुप अपनी बहुमूल्य मणि राजा को दी और वापस अपने घर चला गया l
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