2 March 2025

WISDOM ------

    भौतिकता  की  अंधी  दौड़  के  साथ  मनुष्य  की  मानसिकता  बहुत  बदल  गई  l  कलियुग  का  भी  असर  है  कि   अधिकांश  व्यक्ति  अच्छाई  में  भी  बुराई  ढूंढ  लेते  हैं  l  किसी  के  साथ  अच्छा  व्यवहार  करो  तो  लोग   उसे   उसकी  कमजोरी  और  दिखावा  समझते  हैं  कि  जरुर  कोई  स्वार्थ  होगा  इसीलिए सद् व्यवहार  है  l  लेकिन  मनुष्य  के  अतिरक्त  सभी  प्राणी --पशु -पक्षी  आदि  इस  भौतिकता  की  दौड़  में  नहीं  हैं   इसलिए  वे  नि:स्वार्थ  प्रेम  को  समझते  हैं  l  इनसान  से  अधिक  विश्वसनीय   अब  पशु -पक्षी  हैं   l  एक  कथा  है  ----- एक  राजा  ने  एक  दिन  स्वप्न  देखा   कि  कोई  साधु  उससे  कह  रहा  है  कि   बेटा  !  कल  रात  को   तुझे  एक विषैला  सर्प  काटेगा   और  उसके  काटने  से  तेरी  मृत्यु  हो  जाएगी  l  वह  सर्प  अमुक  पेड़  की  जड़  में  रहता  है  ,  पूर्व  जन्म  की  शत्रुता  का  बदला  लेने  के  लिए   वह  तुझे  काटेगा  l  राजा  धर्मात्मा  था   , उसे  स्वप्न  की  सत्यता  पर  विश्वास  था  l  राजा  ने  सोचा  कि   मधुर  व्यवहार  से  सर्प  के  मन   में  जो  शत्रुता  है  ,  उसे  दूर  किया  जा  सकता  है  l  यह  निर्णय  कर  राजा  ने  उस  पेड़  की  जड़  से  लेकर  अपनी  शैया  तक  फूलों  का  बिछौना  बिछवा  दिया  ,  सुगन्धित  जल  का   छिड़काव   कराया  ,  मीठे  दूध  के  कटोरे  जगह -जगह  रखवा  दिए   और  सेवकों  से  कह  दिया  कि  रात  को  जब  सर्प  निकले   तो  कोई  भी  उसे   किसी  प्रकार  का कष्ट   पहुँचाने  का  प्रयत्न  न  करे    रात  के  ठीक  बारह  बजे  सर्प  अपनी  बाबी  में  से  फुफकारता  हुआ  निकला   और  राजा  के  महल  की तरफ  चल  दिया  l  रास्ते  में  मीठा  दूध , सुगन्धित  जल , फूलों  का  बिछौना  -- इन  सबके  आनंद  से  उसके  मन  का  क्रोध  शांत  होने  लगा  l  द्वार  पर  खड़े  सशस्त्र  प्रहरी  ने  भी  उसे  कोई  कष्ट  नहीं  दिया  l  वह  सोचने  लगा  कि  जो  राजा  इतना  धर्मात्मा  है  , शत्रु  के  साथ  इतना  मधुर  व्यवहार  करता  है  उसे  काटूं  कैसे  ?   राजा  के  पलंग  तक  पहुँचने  तक  उसका  निश्चय  बदल  गया  था  l  वहां  पहुंचकर  उसने  राजा  से  कहा --- " हे  राजन  !  मैं  तुम्हे  काटकर  अपने  पूर्व  जन्म  का  बदला  चुकाने  आया  था   परन्तु  तुम्हारे  सद व्यवहार  ने   मुझे  परास्त  कर  दिया  l  अब  मैं  तुम्हारा  शत्रु  नहीं  मित्र  हूँ  l  उसने  मित्रता  के  उपहार स्वरुप  अपनी  बहुमूल्य  मणि  राजा  को  दी  और  वापस  अपने  घर  चला  गया  l  

No comments:

Post a Comment