पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ----- ' व्यक्ति के श्रेष्ठ कर्म ढाल के समान उसकी रक्षा करते हैं और दुष्कर्म असमय ही उसे मौत के मुँह में ढकेल देते हैं l एक दिन सभी को मृत्यु के आँचल में पसरना है , तो क्यों न जीवित रहते स्वयं को श्रेष्ठतम कर्मों में लगाए रखा जाये l श्रेष्ठ कर्मों से भगवान भी प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा द्रष्टि बनी रहती है l बड़ी -बड़ी दुर्घटनाएं एक छोटा सा काँटा चुभने में निकल जाती हैं l " ------ ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य के शिष्य कृष्ण बोधाश्रम 120 वर्ष जीवित रहे l एक बार वे प्रवास पर थे l उस इलाके में लगातार चार वर्ष से पानी नहीं गिरा था l कुएं -तालाबों का पानी सूख गया था l सभी आए और कहा --- " महाराज जी ! उपाय बताएं ! " वे बोले ---- " पुण्य होंगे तो प्रसन्न होगा भगवान l " लोगों ने पूछा --- 'क्या पुण्य करें ? ' तब महाराज जी ने कहा --- " सामने तालाब है , उसमें थोडा ही पानी है l इसमें मछलियाँ मर रही हैं , पानी डालो l " लोग बोले --- " हमारे लिए ही पानी नहीं है , मछलियों को पानी कहाँ से दें ? " महाराज ने कहा ---- " कहीं से भी लाओ , कुओं से भर -भरकर लाओ और तालाब में डालो l " सभी ने पानी तालाब में डालना शुरू किया l तीसरे दिन बदल आए l घटाएं भरकर महीने भर बरसीं l सारा दुर्भिक्ष --पानी का अभाव दूर हो गया l
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