23 April 2025

WISDOM ----

  हमारे  महाकाव्य  हमें  बहुत  कुछ  सिखाते  हैं   l   रामायण  का  एक  पात्र  है ---- विभीषण  l   राक्षस  कुल  में   जन्म  लेकर  भी  उसे  सही -गलत  की  पहचान  थी  l  जहाँ  रावण  के  आतंक  से  सब  भयभीत  थे  , वहीँ  विभीषण  निडर  था   क्योंकि  वह   नीति  और  न्याय  को  समझता  था  l   विभीषण  ने  रावण  की  अनीति  के  विरुद्ध  आवाज  उठाई,  यह  जानते  हुए  भी  कि  इससे  उसका  जीवन  संकट  में  पड़  सकता  है  l  भरी  सभा  में  उसने  कहा ----- तव  उर  कुमति  बसी  विपरीता  l हित  अनहित  मानहु  रिपु  प्रीता  l    हे  अग्रज  !  आपके  अन्दर  कुमति  का  निवास  हो  जाने  से   आपका  मन  उल्टा  चल  रहा  है  , उससे  आप  भलाई  को  बुराई   और  मित्र  को  शत्रु  समझ  रहे  हैं  l   झूठी   चापलूसी  करने  वाले  सभासदों  के  बीच   अपने  भाई  विभीषण  की   नेक  सलाह  भी   रावण  को  उलटी  लग  रही  थीं  l  क्रोध   में  रावण   कह  उठा  --- ' तू  मेरे  राज्य  में   रहते  हुए  भी   शत्रु  से  प्रेम  करता  है  l  अत:  उन्ही  के  पास  चला  जा   और  उन्ही  को   नीति  की  शिक्षा  दे  l "  ऐसा  कहकर   उसने  विभीषण  को  लात  मारी   और  सभा  से  उसको  निकाल  दिया   l  समझाने  पर  भी  जो  खोटा  मार्ग  न  छोड़े ,  उससे  संबंध  ही  त्याग  देना  चाहिए   l  यही  सोचकर  विभीषण  लंका  छोड़कर   भगवान  राम  की  शरण  में  चला  गया  l  रावण  अनीति  पर  था , अत्याचारी  था  इसलिए  एक  लाख  पूत  और  सवा  लाख  नाती  समेत  उसका  अंत  हो  गया  l   विभीषण  ने   रावण  जैसे  अत्याचारी  के  साथ  रिश्ते  निभाने  के  बजाय  मर्यादा  पुरुषोत्तम  श्रीराम  की  शरण  में   रहना  उचित  समझा   l  संसार  में  आज  इतना  अत्याचार  और  अन्याय  इसीलिए  है   क्योंकि  लोग  अपने  स्वार्थ  के  लिए  अत्याचारी , अन्यायी  को  त्यागने  के  बजाय  उसकी  छत्रछाया  में  रहना  पसंद  करते  हैं   l  यही  कारण  है  की  असुरता  फलती  -फूलती  है  l  

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