प्राकृतिक आपदाएं तो संसार में शुरू से ही आती रही हैं लेकिन मनुष्य अपनी गलतियों से इन आपदाओं की तीव्रता को बढ़ा देता है l मनुष्य कहाँ गलत है इसे सरल ढंग से समझा जा सकता है , जैसे --मनुष्य अपनी धन -संपदा , गहने , बहुमूल्य धातुओं को बहुत संभालकर , छुपाकर रखता है l चोरी से बचने के लिए तो छुपाकर रखा ही जाता है लेकिन यदि ये बहुमूल्य संपदा --हीरे , मोती , स्वर्ण आदि सड़क पर बिखेर दिए जाएँ तो लूट मच जाए , बलवा हो जाए l बेवजह सामाजिक जीवन में संकट न हो इसलिए जीवन के सभी क्षेत्रों में मर्यादा जरुरी है l इसी तरह धरती माँ अपनी बहुमूल्य संपदा को अपने गर्भ में छुपाकर रखती है और ऐसी संपदा जिससे मानव जीवन के अस्तित्व पर खतरे के बादल आ जाएँ , उन्हें और भी गहराई में छुपाकर धरती माँ रखती है l लेकिन अब इसे मनुष्य का लालच कहें या असुरक्षा का भाव , मनुष्य बहुत गहराई तक खोदकर वह सब सामग्री धरती के ऊपर ले आया जिनसे बम और मारक अस्त्र -शस्त्र बनते हैं l मनुष्य ने मर्यादा का उल्लंघन कर दिया , इसलिए अब विध्वंसक रूप में प्राकृतिक आपदाएं आना स्वाभाविक है l सहन शक्ति की भी कोई सीमा होती है l एक ओर तो धरती पर पाप , अपराध , अत्याचार बढ़ता जा रहा है और इसके साथ मनुष्य तंत्र , ब्लैक मैजिक , भूत , प्रेत आदि नकारात्मक शक्तियों के प्रयोग से सम्पूर्ण वातावरण को नकारात्मक बना रहा है l नकारात्मक शक्तियों को भी तो अपनी खुराक चाहिए l मनुष्य के अस्तित्व पर दोहरा आक्रमण है --एक ओर प्रकृति नाराज है इसलिए सामूहिक दंड देती है l दूसरी ओर नकारात्मक शक्तियां अपनी खुराक के लिए ऐसी ह्रदय विदारक घटनाओं को रचती हैं , इससे उनको खुराक भी मिलती है और उनकी फौज भी बढ़ती है l कहते हैं जब जागो , तभी सवेरा l संसार के सभी देश अपने विध्वंसक हथियारों , बम आदि को समुद्र में फेंक दें , इस तरह लड़ने से कोई स्वर्ग का सिंहासन तो मिल नहीं रहा ! प्रत्येक मनुष्य जागरूक हो , मर्यादा में रहे , अपने गलत कर्मों से अगले जन्म में भूत -प्रेत बनने की तैयारी न करे l