जीवन में सकारात्मक एवं श्रेष्ठ विचारों को सदैव स्थान देना चाहिये । विचार हमारे जीवन की दिशा और दशा तय करते हैं ।
जो जीवन हमने पाया उसकी सार्थकता एवं समग्र विकास का मानदंड है कि जो उचित है उसका विचार किया जाये और जहाँ हमें पहुँचना है, वैसे कर्म किये जायें । सामान्य रूप से हम औरों के बारे में, दूसरों के विषय में बहुत कुछ जानते हैं ।
औरों के जीवन में झांकना, उसमे रस लेना, मनोनुकूल न हो तो निंदा करना, हमसे ज्यादा अच्छा हो और बात न मानता हो तो ईर्ष्या करना आदि बातें हमारे औचित्यहीन एवं खोखले जीवन को दरसाती हैं । अंदर से खोखला एवं बेचैन व्यक्ति न दूसरों को कुछ दे सकता है और न स्वयं को ठीक कर सकता है ।
हमारे पास सब कुछ है, साधनों का अंबार है, सुविधाओं का ढेर लगा है, परंतु अपने निजी जीवन के विकास के लिये कोई वैचारिक प्रकाश नहीं, संवेदनशील भाव नहीं । हम अपने अंदर के खोखलेपन को भरने के लिये मान-सम्मान, यश-प्रतिष्ठा के लिये अंधी दौड़ लगाते हैं । इस दौड़ में बाहरी तौर पर हाथ तो बहुत कुछ लगता है , परंतु जीवन एवं जीवन उद्देश्य बहुत पीछे छूट जाता है ।
अपने जीवन की जिम्मेदारी किसी और की नहीं, हमारी अपनी है । हमारे जीवन को हमें ही जीना पड़ेगा । अत: जीवन के प्रति पूर्ण सजग, सतर्क एवं सावधान रहना चाहिये । जीवन संसार की सबसे अनमोल चीज है, इसे यों ही व्यर्थ नहीं गँवा देना चाहिये । कभी किसी का अहित न करें और जहाँ तक संभव हो सतत भलाई करें । क्योंकि कर्म का बीज कभी मरता नहीं, जीवन के खेत में डालते ही वह अपनी तीव्रता के अनुरूप अच्छे-बुरे प्रारब्ध के रूप में आयेगा ही । अत: निष्काम भाव से सतत श्रेष्ठ कर्म करें । हमारा प्रत्येक कर्म युक्तिसंगत और औचित्यपूर्ण हो ।
जो जीवन हमने पाया उसकी सार्थकता एवं समग्र विकास का मानदंड है कि जो उचित है उसका विचार किया जाये और जहाँ हमें पहुँचना है, वैसे कर्म किये जायें । सामान्य रूप से हम औरों के बारे में, दूसरों के विषय में बहुत कुछ जानते हैं ।
औरों के जीवन में झांकना, उसमे रस लेना, मनोनुकूल न हो तो निंदा करना, हमसे ज्यादा अच्छा हो और बात न मानता हो तो ईर्ष्या करना आदि बातें हमारे औचित्यहीन एवं खोखले जीवन को दरसाती हैं । अंदर से खोखला एवं बेचैन व्यक्ति न दूसरों को कुछ दे सकता है और न स्वयं को ठीक कर सकता है ।
हमारे पास सब कुछ है, साधनों का अंबार है, सुविधाओं का ढेर लगा है, परंतु अपने निजी जीवन के विकास के लिये कोई वैचारिक प्रकाश नहीं, संवेदनशील भाव नहीं । हम अपने अंदर के खोखलेपन को भरने के लिये मान-सम्मान, यश-प्रतिष्ठा के लिये अंधी दौड़ लगाते हैं । इस दौड़ में बाहरी तौर पर हाथ तो बहुत कुछ लगता है , परंतु जीवन एवं जीवन उद्देश्य बहुत पीछे छूट जाता है ।
अपने जीवन की जिम्मेदारी किसी और की नहीं, हमारी अपनी है । हमारे जीवन को हमें ही जीना पड़ेगा । अत: जीवन के प्रति पूर्ण सजग, सतर्क एवं सावधान रहना चाहिये । जीवन संसार की सबसे अनमोल चीज है, इसे यों ही व्यर्थ नहीं गँवा देना चाहिये । कभी किसी का अहित न करें और जहाँ तक संभव हो सतत भलाई करें । क्योंकि कर्म का बीज कभी मरता नहीं, जीवन के खेत में डालते ही वह अपनी तीव्रता के अनुरूप अच्छे-बुरे प्रारब्ध के रूप में आयेगा ही । अत: निष्काम भाव से सतत श्रेष्ठ कर्म करें । हमारा प्रत्येक कर्म युक्तिसंगत और औचित्यपूर्ण हो ।
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