मनुष्य की भावनाएं, जिस भी तरह भगवान की ओर मुड़ें, उनमे समाहित हों, वह सभी भक्ति है | फिर चाहे वह पूजा से हो या पाठ से हो, इसका माध्यम चाहे कथा बने या संकीर्तन, सभी को भक्ति कहा जा सकता है | प्रत्येक वह कर्म, भाव व विचार भक्ति है, जिसे भगवान को अर्पित किया गया है |
भगवान बुद्ध जेतवन में ठहरे हुए थे । हर सुबह वे भिक्षावृति को निकलते तो मार्ग में एक किसान अपने खेत में काम करता हुआ मिलता । अपने कार्य के प्रति उसकी निष्ठा देख बुद्ध के मन में उसके प्रति करुणा उमड़ी । वे प्रतिदिन वहां रूककर उस किसान को कुछ उपदेश देने लगे । जब उस किसान की फसल तैयार हुई तो उसने संकल्प लिया कि फसल का एक हिस्सा वह भगवान बुद्ध को और भिक्षु संघ को भेंट करेगा ।
दुर्योगवश उसी रात मूसलाधार वर्षा हुई और उसकी सारी फसल चौपट हो गई । अगले दिन भगवान बुद्ध वहां से गुजरे तो उन्होंने किसान को वहां रोता हुआ पाया । पूछने पर किसान उनको सारी घटना सुना कर बोला--" प्रभु ! मुझे दुःख अपने नुकसान का नहीं, वरन इस बात का है कि मैं आपकी सेवा का ये अवसर चूक गया । बुद्ध मुस्कराए और बोले--- " भंते ! मूल्य वस्तुओं का नहीं, भावनाओं का होता है । तुम्हारे ह्रदय में उमड़ी भावनाएं तो मुझ तक कल ही पहुँच गईं थीं । इनके कारण तुम उससे ज्यादा पुण्य के भागी बने हो, जितना तुम उस फसल को समर्पित करके बनते । मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है । " किसान की आँखे यह सुनकर नम हो उठीं ।
भगवान बुद्ध जेतवन में ठहरे हुए थे । हर सुबह वे भिक्षावृति को निकलते तो मार्ग में एक किसान अपने खेत में काम करता हुआ मिलता । अपने कार्य के प्रति उसकी निष्ठा देख बुद्ध के मन में उसके प्रति करुणा उमड़ी । वे प्रतिदिन वहां रूककर उस किसान को कुछ उपदेश देने लगे । जब उस किसान की फसल तैयार हुई तो उसने संकल्प लिया कि फसल का एक हिस्सा वह भगवान बुद्ध को और भिक्षु संघ को भेंट करेगा ।
दुर्योगवश उसी रात मूसलाधार वर्षा हुई और उसकी सारी फसल चौपट हो गई । अगले दिन भगवान बुद्ध वहां से गुजरे तो उन्होंने किसान को वहां रोता हुआ पाया । पूछने पर किसान उनको सारी घटना सुना कर बोला--" प्रभु ! मुझे दुःख अपने नुकसान का नहीं, वरन इस बात का है कि मैं आपकी सेवा का ये अवसर चूक गया । बुद्ध मुस्कराए और बोले--- " भंते ! मूल्य वस्तुओं का नहीं, भावनाओं का होता है । तुम्हारे ह्रदय में उमड़ी भावनाएं तो मुझ तक कल ही पहुँच गईं थीं । इनके कारण तुम उससे ज्यादा पुण्य के भागी बने हो, जितना तुम उस फसल को समर्पित करके बनते । मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है । " किसान की आँखे यह सुनकर नम हो उठीं ।
No comments:
Post a Comment