' कार्य कभी कारणरहित नहीं होते, क्रिया कोई परिणामरहित नहीं होती | उसी तरह भाग्य कभी अपने आप नहीं बनता, बल्कि व्यक्ति के कर्मो की कलम इसे लिखती है । '
एक राजकुमार बड़ा अत्याचारी था । राजा ने इस दुर्बुद्धि को सुधारने की बड़ी कोशिश की, लेकिन वह नहीं सुधरा । भगवान बुद्ध उसे सुमति देने स्वयं उसके पास गये । वे उसे नीम के एक पौधे के पास ले गये और बोले, राजकुमार इस पौधे का एक पत्ता तो चखकर बताओ कैसा है ?
राजकुमार ने पत्ता तोड़कर चखा । उसका मुँह कड़वाहट से भर गया । उसे तुरंत थूककर उसने नीम का पौधा ही जड़ से उखाड़ फेंका ।
बुद्ध ने पूछा--" राजकुमार ! यह तुमने क्या किया ? " राजकुमार ने उत्तर दिया --यह पौधा अभी से ऐसा कड़वा है, बढ़ने पर तो पूरा विष-वृक्ष ही बन जायेगा । ऐसे विषैले पौधे को जड़ से उखाड़ना ही ठीक है । " बुद्ध ने गंभीर वाणी में कहा --राजकुमार ! तुम्हारे कटु व्यवहार से पीड़ित जनता भी यदि तुम्हारे प्रति ऐसी ही नीति से काम ले, तो तुम्हारी क्या गति होगी ? यदि तुम फलना-फूलना चाहते हो तो उदार, दयावान और लोकप्रिय बनो । उस दिन से राजकुमार ने बुराई की राह छोड़ भलाई का मार्ग अपना लिया ।
एक राजकुमार बड़ा अत्याचारी था । राजा ने इस दुर्बुद्धि को सुधारने की बड़ी कोशिश की, लेकिन वह नहीं सुधरा । भगवान बुद्ध उसे सुमति देने स्वयं उसके पास गये । वे उसे नीम के एक पौधे के पास ले गये और बोले, राजकुमार इस पौधे का एक पत्ता तो चखकर बताओ कैसा है ?
राजकुमार ने पत्ता तोड़कर चखा । उसका मुँह कड़वाहट से भर गया । उसे तुरंत थूककर उसने नीम का पौधा ही जड़ से उखाड़ फेंका ।
बुद्ध ने पूछा--" राजकुमार ! यह तुमने क्या किया ? " राजकुमार ने उत्तर दिया --यह पौधा अभी से ऐसा कड़वा है, बढ़ने पर तो पूरा विष-वृक्ष ही बन जायेगा । ऐसे विषैले पौधे को जड़ से उखाड़ना ही ठीक है । " बुद्ध ने गंभीर वाणी में कहा --राजकुमार ! तुम्हारे कटु व्यवहार से पीड़ित जनता भी यदि तुम्हारे प्रति ऐसी ही नीति से काम ले, तो तुम्हारी क्या गति होगी ? यदि तुम फलना-फूलना चाहते हो तो उदार, दयावान और लोकप्रिय बनो । उस दिन से राजकुमार ने बुराई की राह छोड़ भलाई का मार्ग अपना लिया ।
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