पोखर का जल सूखता जा रहा था | कहीं बाहर से कोई जलधारा आकार उसमे मिलने को तैयार न थी | वर्षा का भरा जल कब तक साथ देता | गर्मी की प्रचंडता बढ़ते ही बचा हुआ जल भी सूखने लगा | पोखर ने समीपवर्ती नदियों के पास संदेश भेजे कि वे इतनी लंबी यात्रा करके समुद्र को इतना जल पहुँचाती हैं तो मुझ दीन-हीन की सहायता के लिये थोड़ी सी जलधारा मोड़ क्यों नहीं लेती |
सभी नदियों के एक जैसे उत्तर पोखर के पास पहुँचे---" तुमने अपना जल अपने छोटे दायरे में ही सीमित रखा | किसी को देने के लिये आगे नहीं बढीं, जबकि समुद्र अपना जल बादलों के माध्यम से धरती के कोने-कोने में ती है | उससे सभी प्राणी व वनस्पति लाभ उठाते हैं | ऐसे उदारचेत्ता के लिये ही हम सब दौड़-दौड़ कर उसे अपना समर्पण करने पहुंचती हैं | क्या तुममे ऐसी कुछ उदारता है ? " पोखर क्या जवाब देती |
सभी नदियों के एक जैसे उत्तर पोखर के पास पहुँचे---" तुमने अपना जल अपने छोटे दायरे में ही सीमित रखा | किसी को देने के लिये आगे नहीं बढीं, जबकि समुद्र अपना जल बादलों के माध्यम से धरती के कोने-कोने में ती है | उससे सभी प्राणी व वनस्पति लाभ उठाते हैं | ऐसे उदारचेत्ता के लिये ही हम सब दौड़-दौड़ कर उसे अपना समर्पण करने पहुंचती हैं | क्या तुममे ऐसी कुछ उदारता है ? " पोखर क्या जवाब देती |
No comments:
Post a Comment