एक अँधा था । दूसरा पैर रहित पंगा । दोनों नदी किनारे बैठे थे । पार जाने का सुयोग नहीं बन रहा था । नदी बहुत गहरी न थी । पंगे ने अंधे से कहा--- " आप मुझे पीठ पर बैठा लें, मैं रास्ता बता दूँगा, आप चलना । मिल-जुलकर नदी पार कर लेंगे । "
ऐसा ही हुआ । निराशा आशा में बदली, सहकार अपनाकर दोनों पार हो गये ।
' ज्ञान पंगु है और कर्म अंधा । दोनों मिलकर ही कठिनाइयों की नदी पार कर सकते हैं । '
एक व्यक्ति नितांत निर्धन और अशिक्षित था । वह कोई उच्चकोटि का पुण्य-परमार्थ करने की भावना से आकुल था । समाधान के लिये किसी तत्वज्ञानी के पास पहुँचा ।
पूरी बात समझकर उन्होंने परामर्श दिया कि जो तालाब उथले हो गये हैं, उन्हें खोदते रहने की तप-साधना में लगो । इससे पशुओं को, पक्षियों को, मनुष्यों को पानी मिलेगा । यह पुण्य तुम्हारी स्थिति में बिलकुल उपयुक्त और महत्वपूर्ण तथा फलदायक सिद्ध होगा । उसने वही किया ।
ऐसा ही हुआ । निराशा आशा में बदली, सहकार अपनाकर दोनों पार हो गये ।
' ज्ञान पंगु है और कर्म अंधा । दोनों मिलकर ही कठिनाइयों की नदी पार कर सकते हैं । '
एक व्यक्ति नितांत निर्धन और अशिक्षित था । वह कोई उच्चकोटि का पुण्य-परमार्थ करने की भावना से आकुल था । समाधान के लिये किसी तत्वज्ञानी के पास पहुँचा ।
पूरी बात समझकर उन्होंने परामर्श दिया कि जो तालाब उथले हो गये हैं, उन्हें खोदते रहने की तप-साधना में लगो । इससे पशुओं को, पक्षियों को, मनुष्यों को पानी मिलेगा । यह पुण्य तुम्हारी स्थिति में बिलकुल उपयुक्त और महत्वपूर्ण तथा फलदायक सिद्ध होगा । उसने वही किया ।
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